________________
रोगिमृत्युदिकाने नग्नो घृताप्लुताङ्गश्च जुहोत्यग्निमनषिम्। यः स्वप्ने तं क्षणात्कुष्ठं प्राप्य चान्तं तु नेष्यति ॥ १६ ॥
जो मनुष्य स्वप्न में नग्न, घृत से सराबोर-शरीर में खूब घृत लगा हुआ, अचि-रहित ज्वाला से शून्य अर्थात् राख के ढेर में होम करता है, उसे बहुत जल्द कुष्ठ रोग उत्पन्न होगा, और कुष्ठ रोग को प्राप्त होकर मरेगा ॥१६॥
यस्य चोरसि जायन्ते स्वप्ने पमानि भूरिशः। सोऽपि कुष्ठेन रोगेण मरिष्यति न संशयः ॥ १७॥ जिसके स्वप्न में अनेक बहुत से कमल वक्षःस्थल पर उत्पन्न हो जायँ वह भी कुष्ठ रोग से ही मरेगा; इसमें अणुमात्र भी संशय नहीं है, निश्चित समझो ॥ १७ ॥
स्वप्नेऽनेकविधं स्नेहं चाण्डालैः सार्धमापिबेत् ।। यः स स्वप्नोत्थितो मेहं लब्ध्वा नाशं गमिष्यति ॥ १८॥ जो मनुष्य स्वप्न में चाण्डालों के साथ अनेक प्रकार का घत तैल आदि स्नेह को पीता है वह सोकर उठा हुआ जल्दी ही प्रमेह रोग को प्राप्त होकर मरेगा ॥ १८ ।।
स्वप्ने पश्येत् बहून् शब्दान तथाऽनेकविधानपि । यः शृणोतीति सुस्थोऽपि सोऽपस्मारेण हन्यते ॥ १९ ।। जो मनुष्य स्वप्न में बहुत से और अनेक प्रकार के शब्दों को सुनता है, अर्थात् मैं सुन रहा हूँ ऐसा स्वप्न देखता है, और सुस्थ होकर भी जो सुनता है, अर्थात् मैं सुन रहा हूँ, ऐसा समझता है, वह अपस्मार मिर्गी रोग से मरता है, उसे एक वर्ष के अन्दर ही मिर्गी रोग उत्पन्न होकर मार देगा ॥ १६ ॥