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. दशमोऽध्यायः यदि शुभ्रवर्ण के सफेद पुष्पित अर्थात् खिले हुये फूलों का स्वप्न में दर्शन हो तो आरोग्य हो और स्वस्थ मनुष्य सुख को प्राप्त हो॥६॥
गवाश्वरथयानैश्च पूर्वस्मादुत्तरं ब्रजेत् । उत्तरात्पूर्वमथवा गच्छेत्स्वप्ने सुखं भवेत् ॥ १० ॥ गो-वृषभ, घोड़ा, रथ, यान-मोटर यादि द्वारा पूर्व से उत्तर तरफ अथवा उत्तर से पूर्व तरफ स्वप्न में जाय तो सुख को प्राप्त हो॥१०॥
उत्थानं पतितस्यापि रोदनं द्वितिरस्कृतिम् ।। निष्पीडनं च शत्रूणां स्वप्ने दृष्ट्वा सुखं व्रजेत् ।। ११ ॥ यदि स्वप्न में, गिरे हुए का उठना, रोना, शत्रु का तिरस्कार अथवा शत्रुओं का दुःख निष्पीडन देखे तो सुख को प्राप्त होगा, अर्थात् उक्त कार्यों को देख कर रोगी आरोग्य को और स्वस्थ समृद्धि को पायेगा ॥११॥
आयुः सुखं बलं चापि नैरोग्यं लभते महत् । भावान् स्वाभिमतांश्चापि मनुष्यः शुभलक्षणः ॥ १२ ॥ नैरोग्य से आयु सुख बल को वृहत् :समृद्धि को पाता है, और शुभ लक्षण अर्थात् उत्तम लक्षण युक्त स्वप्नवाला मनुष्य स्वाभिमत भावों को मनोभिलषित कार्यों को पाता है ॥ १२ ॥
अरिष्टं दृतलक्ष्माणि माग¥त्पातिकमेव च । स्वप्नाः शुभाशुभाश्चापि पूर्वमेतद्धि वर्णितम् ॥ १३ ॥
अरिष्ट-मरण सूचक चिह्न अर्थात् कितने दिनों में किस चिह्न से मरेगा, इस अरिष्ट ज्ञान को तथा दूत लक्षण को अर्थात् किस प्रकार के दूत से कार्यसिद्धि होगी और किस प्रकार के दूत से नहीं,एवं मार्ग में समुत्पन्न उत्पातों को तथा शुभ अशुभ स्वप्नों का यह वर्णन किया ॥ १३॥