________________
२०]
__ मृत्यु और परलोक यात्रा हो जाता है। शुद्ध आत्मा के साथ जब अहंकार के कारण बुद्धि, मन, चित्त आदि का संयोग होता है तो. इसे “जीवात्मा" कहा जाता है।
यह संयोग चूंकि अनादि काल से है अतः जीवात्मा को भी अनादि कहा जाता है । इन विजातीय तत्त्वों का वियोग होने पर यह आत्मा अपने शुद्ध स्वरूप को पुनः प्राप्त कर लेती है तथा समष्टि चेतन में स्थित हो जाती है जहाँ से इसका . उद्गम है। यही इस जीवात्मा की "मुक्तावस्था" है । मुल्लावस्था तक जीवात्मा का परमात्मा से पार्थक्य बना रहता है ।
यह ब्रह्म चेतन समष्टि चेतना है जो जीव में आत्मचेतना के रूप में कार्य करती है। इस आत्म चेतना का मुख्य आधार प्राण चेतना है जिसका अपना स्वतन्त्र विज्ञान है। आत्म चेतना के ज्ञान से इसे जाना जा सकता है। इस विराट ब्रह्म का लघुतम घटक परमाणु है जिसके भीतर अनन्त ऊर्जा समाहित है, उसी प्रकार शरीर का लघुतम घटक आत्मा है जो शक्ति का केन्द्र है। यह जोवात्मा उस विराट का अंश नात्र होते हुए भी उसमें बीज रूप में वह सब कुछ विद्यमान है जो उस विराट में है।
जिस प्रकार छोटे से बीज में विशालकाय समूचे वृक्ष की सत्ता भरी पड़ी है. मनुष्य के छोटे से वीर्य कण में मनुष्य की समूची सत्ता विद्यमान है, मनुष्य के विकास की समस्त सभावनायें उस वीर्य कण में पहले से ही विद्यमान है, उसी के अनुसार मनुष्य का विकास होता है। ___ यदि वह विद्यमान न हो तो उसका विकास सम्भव ही १ नहीं था । इसी प्रकार आत्मा में परमात्मा का समस्त