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. २. ब्रह्म, आत्मा और शरीर (अ) ब्रह्म और आत्मा .. अध्यात्म विज्ञान के अनुसार इस समस्त जड़, चेतनमय सृष्टि को मूल इकाई 'चेतन ऊर्जा है तथा भौतिक पदार्थों की मूल इकाई "परमाणु" इसी का रूप है। भौतिक ऊर्जा के भीतर भी यही चेतन ऊर्जा है। जिससे इसका निर्माण हुआ है। वैज्ञानिकों ने भी इस भौतिक ऊर्जा के भीतर चेतनता का अनुभव किया है। यही चेतना समष्टि के हर कण में व्याप्त है। इस समष्टि चेतन को ही "ब्रह्म" नाम दिया है। यही समष्टि चेतन हर व्यक्ति में व्याप्त है जिसे "व्यष्टि चेतन" या "आत्मा" नाम दिया गया है।
शरीर में व्याप्त चेतना तथा समष्टि चेतना भिन्न-भिन्न नहीं है बल्कि एक ही चेतन ऊर्जा है । यह व्यष्टि चेतन (आत्मा) जब अपने शुद्ध स्वरूप को प्राप्त कर लेता है तब यह समष्टि चेतन में विलीन हो जाता है। यह आत्मा उस विराट् ऊर्जा का अंश होते हुए भी पूर्ण हैं । इसका स्वतन्त्र अस्तित्व शरीर के कारण ज्ञात होता है जिसका मूल कारण अहंकार है। वास्तव में इसका स्वतन्त्र अस्तित्व है ही नहीं, किन्तु जब यह अहंकार रूपी आवरण से बद्ध हो जाता है तो इसका नाम “जीवात्मा"
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