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[४] शिक्षण प्रक्रिया में सर्वांगपूर्ण परिवर्तन की आवश्यकता किया जाए, योग्य बनाया जाए। इसके लिए शिक्षा व्यवस्था का ही सहारा लेना होता है। इतना चिंतन करने पर समाज के स्थायी विकास के लिए शिक्षण तंत्र को सुविकसित एवं समुन्नत बनाने की आवश्यकता को स्वीकार करना ही पड़ता है।
इस प्रयास में समाज के सभी वर्ग सहयोग कर सकते हैं। अशिक्षित स्वयं शिक्षित बनने में उत्साह लें और शिक्षित व्यक्ति दूसरों को अधिक से अधिक शिक्षा प्रदान करने में रस लें। इनके अतिरिक्त तीसरा वर्ग वह है, जो शिक्षा-संवर्धन के साधन जुटाता है। इमारत, उपकरण, वेतन आदि की व्यवस्था करता है। जो इसका महत्त्व समझते हैं; वे इस हेतु अपनी दानशीलता, उदारता का परिचय देते हैं। स्वयं से उतना न बन पड़े तो उदार तबियत के संपन्न व्यक्तियों को शिक्षा की उपयोगिता समझाकर, इस दान सहयोग से मिलने वाले पुण्य का स्मरण दिलाकर, चंदा इकट्ठा करके इस
आवश्यकता को पूरा करते हैं। इस प्रकार सभी अपने क्षेत्र में शिक्षा विस्तार प्रक्रिया को अधिकाधिक गति दे सकते हैं।
सरकार भी इसका एक महत्त्वपूर्ण पक्ष है। उसका शिक्षा विभाग इसी प्रकार के ताने-बाने बुनता रहता है। विद्यालय खोलने और उन्हें चलाने में सरकारी प्रयत्न भी बहुत कुछ करते दिखाई देते हैं। इस संदर्भ में बढ़ती आबादी और देश की बढ़ती आवश्यकताओं को देखते हुए शिक्षा के नए-नए आयाम भी खड़े किए जा रहे हैं। सोचने वाले इस विषय पर सोचते हैं और नई-नई योजनाएं बनाते हैं। चालू क्रम में सुधार, परिवर्तन, संवर्धन के लिए ऐसे उपाय खोजे जाते हैं कि अधिक से अधिक व्यक्तियों तक शिक्षा का अधिक से अधिक लाभ पहुंचाया जा सके।
___ इतने पर भी जो हो चुका है, हो रहा है; उसकी तुलना में अगले दिनों और भी अधिक बड़े कदम उठाए जाने की आवश्यकता है। इस प्रसंग में यह भी स्मरण रखना होगा कि शिक्षा के विस्तार के साथ-साथ शिक्षा का स्तर उठाना भी आवश्यक है। स्तर उठाने का अर्थ है शिक्षा के स्वावलंबन और सुसंस्कारिता प्रधान पक्षों को अधिक समुन्नत बनाया जाना।