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गुलाम है और जिसने आशा पर विजय प्राप्त कर ली है उसने समूचे विश्व पर विजय पाई है।
योगिराज प्रानन्दघनजी ने गाया हैप्राशा औरन की क्या कीजे ?
ज्ञान सुधारस पीजे । प्राशा दासी के जे जाया ,
ते जन जग के दासा। प्राशा दासी करे जे नायक ,
लायक अनुभव प्यासा ॥
आशा का गुलाम शेखचिल्ली की भाँति कल्पनाओं के जाल बुनता रहता है।
शेखचिल्ली बाजार में इधर-उधर की मजदूरी करता था। एक बार एक सेठ बाजार में घी लेने के लिए आए। उन्होंने एक दुकान से ५ कि.ग्रा. शुद्ध घी खरीदा। सेठजी की नजर शेखचिल्ली पर पड़ी। उन्होंने उसे कहा-'घी के इस घड़े को उठाकर मेरे घर ले चलोगे तो मैं तुम्हें मजदूरी का एक रुपया दूंगा।'
शेखचिल्ली ने सेठ की बात तुरन्त स्वीकार कर ली और वह घी का घड़ा उठाकर चलने लगा। धीरे-धीरे वह आगे बढ़ रहा था। 'आज मजदूरी में एक रुपया मिलेगा' इस बात का उसे बहुत ही आनन्द था, वह सोचने लगा-'सेठ मुझे एक रुपया देंगे. फिर मैं पीपरमेंट खरीदूंगा जिसे ले जाकर स्कूल के बाहर बेचूगा जिससे मुझे कुछ मुनाफा होगा. फिर मैं बिस्किट
मृत्यु की मंगल यात्रा-74