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तो किसो का पर। कोई आग में जला हुआ दर्दी है तो कोई एक्सीडेट से घायल ।
इस संसार में कोई रोग के कारण दु:खी है तो कोई संतान न होने के कारण। कहीं लूटपाट : चल रही है तो कहीं बलात्कार । नाना प्रकार के आतंक से मानव भयभीत बना हुअा है।
अरे! इस संसार में देवलोक में रहा देव भी सुखी नहीं है। अमाप शक्ति व समृद्धि का स्वामी होते हुए भी वह ईा व लोभ से ग्रस्त है, इस कारण उसका बाह्य सब सुख हवा हो जाता है। गुलाब-जामुन के स्वाद के साथ ही एक कंकड़ पा जाय तो जो दशा मानव की होती है, वही हालत ईर्ष्या व लोभ दोष के कारण देवताओं की है।
प्रिय दीपक !
यह सम्पूर्ण ससार नाना प्रकार की वेदनाओं से भरा हुआ है। संसार में सुख का नामोनिशान नहीं है। दुनिया में अर्थ-काम के साधनों में हम सुख मानते हैं, परन्तु यह हमारी भ्रान्ति ही है। वास्तव में, वह सुख नहीं किन्तु सुखाभास ही है।
गर्मी के दिनों में रेगिस्तान में जब गर्म हवा (लू) चलती है, तब वह दूर से बहती हुई नदी की भाँति प्रतीत होता है, परन्तु ज्योंही उसके निकट पहुँचते हैं, त्योंही जल की भ्रान्ति दूर हो जाती है।
मृत्यु की मंगल यात्रा-69