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________________ घड़ी यह नहीं बताती कि समय चल रहा है, किन्तु वह बताती है कि आप समाप्त हो रहे हैं । प्रिय मुमुक्षु 'दीपक' ! धर्मलाभ | 8 परमात्मा की असीम कृपा से आनन्द है । कुछ दिनों पूर्व तुम्हारा पत्र मिला था, परन्तु समयाभाव के कारण शीघ्र पत्र न दे सका । खैर, आज कुछ समय निकाल कर पत्र लिख रहा हूँ । आज मैं तुम्हें पूर्वाचार्य विरचित 'वैराग्य शतक' ग्रन्थ का श्रास्वादन कराना चाहता हूँ । 'वैराग्य शतक' एक अद्भुत ग्रन्थ है । किसी अज्ञात पूर्वाचार्य महर्षि की इस कृति का ज्यों-ज्यों रसपान करते हैं, त्यों-त्यों अंतरात्मा में प्रकाश की दिव्य किररण प्राप्त होने लगती है । इस ग्रन्थ में कुल १०४ गाथाएँ हैं । मेरी तो इच्छा है कि तू इस ग्रन्थ को कण्ठस्थ कर ले... मात्र कण्ठस्थ ही नहीं, आत्मस्थ भी करना होगा । ग्रन्थकार महर्षि ने इसकी एक-एक गाथा में जो मार्मिक उपदेश दिया है, उस पर यदि ध्यानपूर्वक चिन्तन-मनन और मृत्यु की मंगल यात्रा - 64
SR No.032173
Book TitleMrutyu Ki Mangal Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnasenvijay
PublisherSwadhyay Sangh
Publication Year1988
Total Pages176
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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