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अन्तरात्म-दशा की प्राप्ति बिना परमात्म-दशा की प्राप्ति सम्भव ही नहीं है ।
प्रिय 'दीपक' !
ज्यादा न हो सके तो कम-से-कम इस जीवन में आत्मा के स्वरूप का यथार्थ बोध तो कर ही लेना होगा ।
आत्म-स्वरूप के यथार्थ बोध के बाद तुझे दुनिया के सुख स्वतः तुच्छ प्रतीत होंगे - फिर उन सुखों के त्याग के लिए स्वतः ही अन्त: प्रेरणा प्राप्त होगी ।
आत्मा तो सुख का अक्षय भण्डार है और वह सुख स्वाधीन, यथार्थ, दुःखरहित और चिरस्थायी है ।
अध्यात्म-साधना में प्रयत्नशील बने रहो, इसी शुभेच्छा
- रत्नसेनविजय
के साथ
मूर्च्छा मृत्यु है, आत्मजागृति ही जीवन है ।
मृत्यु की मंगल यात्रा - 53