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________________ मत-सम्मत पुस्तक : जिन्दगी जिन्दादिली का नाम है - (१) 'प्रेरक कथाओं केमाध्यम से सुन्दर प्रतिपादन प्रस्तुत पुस्तक में किया गया है। प्रकाशन-सम्पादन व्यवस्थित है। हिन्दीभाषी क्षेत्रों में यह पुस्तक उपयोगी बनेगी। धार्मिक कथा-साहित्य का हिन्दी में प्रकाशन आवश्यक है। मुनिश्री का यह प्रयास अनुमोदनीय है।' -पूज्य प्राचार्यप्रवर श्री पासागर सूरीश्वरजी म. (२) तीन पठनीय चरित्र-कवाएं-मुनि रत्नसेन विजयजी की पुस्तकें पूरी तरह जन-जीवन से जुड़ी होती हैं। वे स्वप्निलता या काल्पनिकता में विश्वास नहीं करतीं बल्कि किसी ठोस धरती पर जीवन को बदलने का अविचल संकल्प रखती हैं। आलोच्य कृति में तीन चरित्र-कथाएँ हैं : सरल, सरस, सुबोध, संबोधक। ये हैं : माँ हो तो ऐसी हो, प्रभावक सूरिवर, ब्रह्मचर्य का प्रभाव । हमें विश्वास है इनके भीतर पैठी नैतिक ऊर्जा प्रकट होगी और उन लोगों को जो अंधे ढंग से परम्परित हैं और जो धर्म-की-धरा को तर्क-के-हल से अभी पूरी तरह खेड़ नहीं पाये हैं-नवार्थ प्रदान करने में सफल होगी। -नेमीचन्द जैन (तीर्थंकर मासिक, अगस्त १९८८) (३) हिन्दी भाषा में प्रकाशित प्रस्तुत कृति में तीन ऐतिहासिक कथाएँ विस्तृत रूप में शब्दस्थ बनी हैं। प्रथम वार्ता श्री प्रार्यरक्षित की है। ८ प्रकरणों के अन्तर्गत-माता कैसी होनी चाहिये ? का प्रेरक शब्दचित्र उपस्थित किया गया है। दूसरी श्री पादलिप्तसरिजी की कथा ५ प्रकरणों में विभक्त है। तीसरी कथा पेथड़शाह की है, जिसमें ५ प्रकरणों में ब्रह्मचर्य के प्रभाव का सुन्दर वर्णन है। इस प्रकार ये तीन कथाएँ सुन्दर व रसप्रद शैली में हिन्दी में आलेखित होने से यह प्रकाशन कथारसिकों के लिए तो अत्यन्त ही उपयोगी बनेगा। लेखक मुनिश्री की साहित्ययात्रा चिन्तन-विवेचन के क्षितिजों को पार कर कथा-विषय की अोर आगे बढ़ रही हैं-उसका सुस्वागत है। -कल्याण मासिक, जून १९८८
SR No.032173
Book TitleMrutyu Ki Mangal Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnasenvijay
PublisherSwadhyay Sangh
Publication Year1988
Total Pages176
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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