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लेखक की कलम से
मृत्यु की मंगल यात्रा
आत्म-चिन्तन के अथाह सागर में अवगाहन करने वाले किसी पूर्वाचार्य महर्षि ने कहा है-'हे बाल ! तू मरण से क्यों भयभीत होता है ? वह भयभीत को छोड़ने वाला नहीं है । जो अजन्मा बन गया, उसे पकड़ने वाला नहीं है. अतः अजन्मा बनने के लिए प्रयत्न कर।' उपर्युक्त चिन्तन में हमें मृत्यु की शक्ति का परिचय मिलता है। मृत्यु उसी पर अपना प्रहार करती है, जिसने जन्म धारण किया है। ठीक ही कहा है'जातस्य हि ध्र वो मृत्युः' 'जन्म धारण करने वाले की मृत्यु निश्चित है।' हाँ ! जिसने प्रात्मा की अमरता पा ली है, उमे मृत्यु डरा नहीं सकती। उसे मृत्यु हरा नहीं सकती। एक बार भगवान महावीर को गौतम स्वामी ने पूछा'भगवन्त ! प्राणी को मरना क्यों पड़ता है ?' प्रभु ने कहा, 'हे गौतम ! क्योंकि उसने जन्म धारण किया है ।'
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