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प. पू. महाराज श्री रत्नसेन विजयजी का यह कोई प्रथम प्रयास नहीं है । आप एक प्रवर विचारक, लेखक और सन्मार्गोपदेष्टा हैं । आपकी लेखनी अबाध गति से चलती ही रहती है। अभी तक २५ पुष्प सुधी पाठकों के आत्मकल्याणार्थ प्रकाशित हो चुके हैं । प्रस्तुत पुस्तक इस भौतिकवादी युग में मानव के लिए दीपस्तम्भ के समान है ।
महावीर शिक्षा संस्थान रानी, जिला - पाली
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- राघवप्रसाद पाण्डेय साहित्याचार्य, एम.ए. बी.एड.