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________________ के गुण-धर्म, आत्मा की पर्यायें और आत्म-हितकारी पदार्थों के बारे में विचार-विमर्श किया जाता है। स्वाध्याय से आत्महितकारी ज्ञान की प्राप्ति होती है। जिस पुस्तक/उपन्यास/जासूसी कथा आदि से आत्मा का अहित होता हो, उन्मार्ग का पोषण और सन्मार्ग का शोषण होता हो, तथा सुसंस्कारों का विनाश होता हो, उस प्रकार के साहित्य का पठन-पाठन नहीं करना चाहिये । जिससे सन्मार्ग का यथार्थ बोध हो और सुसंस्कारों का सिंचन होता हो, उसी साहित्य का पठन-पाठन करना चाहिये। वास्तव में तो गुरु-सान्निध्य में ही ज्ञानाभ्यास करना चाहिये। गुरु के विनय/बहुमान व भक्ति-पूर्वक जो ज्ञान प्राप्त किया जाता है, वह अल्प भी ज्ञान आत्मा के लिए विशेष लाभकारी बनता है। गुरु का अविनय करके, गुरु की उपेक्षा करके जो ज्ञान प्राप्त किया जाता है, वह प्रात्मा के लिए लाभकारी नहीं बनता है, बल्कि नुकसानकारी ही बनता है । ___शास्त्र में कहा है—'मोक्षमूलं गुरोः कृपा' मोक्ष का मूल गुरु की कृपा है। गुरु की कृपा वही शिष्य प्राप्त कर सकता है, जिसके हृदय में गुरु के प्रति पूर्ण समर्पण भाव हो । ___ मन, वचन और काया इन त्रियोगों को गुरुचरणों में समर्पित करने वाला साधक अल्प भवों में ही भव के बन्धन से मुक्त होकर शाश्वत पद का भोक्ता बन जाता है। गुरु-समर्पण अर्थात् गुरु-चरणों में स्व अधिकारों का विलीनीकरण। समर्पित शिष्य के लिए गुरु की आज्ञा ही सर्वस्व मृत्यु की मंगल यात्रा-130
SR No.032173
Book TitleMrutyu Ki Mangal Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnasenvijay
PublisherSwadhyay Sangh
Publication Year1988
Total Pages176
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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