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________________ पसन्द है न तुझे वह शाश्वत जीवन, जहाँ मृत्यु का नामोनिशान ही नहीं है। जहाँ सदा के लिए जीवन है, सदा के लिए आनन्द है, सदा के लिए बन्धन-मुक्ति है। जहाँ प्रात्मा का स्वतन्त्र अस्तित्व है. "स्वतन्त्र जीवन है जहाँ प्रात्मा सतत ज्ञाताद्रष्टा बनकर अक्षय आनन्द का अनुभव करती है। आत्मा की ऐसी ही स्थिति को तीर्थंकर परमात्मा ने 'मोक्ष' कहा है। - यह दुर्लभ मानव-जीवन उसी की साधना के लिए है। उसी की प्राप्ति के पुरुषार्थ में जीवन की सफलता/सार्थकता है। अपने समस्त पुरुषार्थ का लक्ष्य उसी को बनायो। समयाभाव के कारण आज पत्र यहीं समाप्त करता हूँ। तुम्हारे प्रतिभाव को जानकर विशेष बातें अगले पत्र में लिखूगा। शेष शुभम् । -रत्नसेनविजय rawnwwwmmmmmmmmmmmonwr All the world is a stage and all the men and women merely players. सम्पूर्ण विश्व एक नाट्यशाला है और सभी स्त्री-पुरुष उसके अभिनयकर्ता हैं। tammmmmmmmmmmmmmmmmmmmmms मृत्यु की मंगल यात्रा-122
SR No.032173
Book TitleMrutyu Ki Mangal Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnasenvijay
PublisherSwadhyay Sangh
Publication Year1988
Total Pages176
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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