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________________ कवि ने कितनी सुन्दर और मार्मिक बात कही है ! 'मोक्ष' ही अपना वास्तविक घर है। दुनिया के घर तो अल्पकालीन है। मोक्ष में ही हम सदा के लिए अवस्थित रह सकते हैं। जिस प्रकार सरकारी नौकरी करने वाला कर्मचारी एक स्थान में स्थायी नहीं होता है, उसका ट्रांसफर होता रहता है, उसी प्रकार कर्म की नौकरी करने वाला संसारी जीव भी एक स्थान (एक भव) में हमेशा के लिए स्थायी नहीं रह सकता, एक भव से दूसरे भव में एक शरीर से दूसरे शरीर में उसका ट्रांसफर होता ही रहता है। वह चाहे या न चाहे, उसे अपना घर/अपना देह बदलना ही पड़ता है। मुमुक्षु 'दीपक' ! हाँ ! एक ऐसा भो उपाय है, जिसके द्वारा मृत्यु पर (अन्तिम मृत्यु द्वारा) विजय पाई जा सकती है । • गजसुकुमाल महामुनि ने अन्तिम मृत्यु के द्वारा भी मृत्यु को मार डाला था। • खन्धक मुनि, मेतारज मुनि, दृढ़प्रहारी, प्रभु महावीर आदिआदि ने समत्वयोग की साधना द्वारा मृत्यु पर विजय प्राप्त कर ली थी। समत्वयोग की साधना द्वारा वे एक ऐसी स्थिति को प्राप्त हो चुके थे कि जहाँ मृत्यु उनका पीछा नहीं कर सकती। वे सदा के लिए मृत्यु से परे पहुंच चुके थे। वे शाश्वत-जीवन के भोक्ता बन चुके थे। मृत्यु की मंगल यात्रा-121
SR No.032173
Book TitleMrutyu Ki Mangal Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnasenvijay
PublisherSwadhyay Sangh
Publication Year1988
Total Pages176
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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