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हैं। बुद्ध ने सदैव यही कहा कि सांसारिक तत्वों के योग से यह शरीर
उत्पन्न हुआ हैं और यदि किसी तरह इन तत्वों को अलग कर दें, या नाश कर दें तो सभी दुःख दूर हो जायेंगे। यदि कर-अधिकारी हमारा बड़ा घर होने के कारण हमें बहुत परेशान करे तो इस समस्या का सीधा सादा हल मकान को नष्ट कर देना ही है। परन्तु भगवद्गीता कहती है कि भौतिक शरीर ही सब कुछ नहीं है। इन तत्त्वों के संयोग के परे आत्मा है और आत्मा का लक्षण चेतना है। - चेतना को नहीं नकारा जा सकता है। बिना चेतना का शरीर मरा हुआ शरीर है। जैसे ही शरीर से चेतना निकाल दी जाती है, मुँह बोल नहीं सकता है, आँख देख नहीं सकती है और कान सन नहीं सकते हैं। इस बात को एक बच्चा भी समझ सकता है। यह सत्य है कि शरीर के जीवित होने के लिए चेतना अनिवार्य है। यह चेतना क्या है? जैसे अग्नि का लक्षण गर्मी और धुआँ है वैसे ही आत्मा का लक्षण चेतना है। आत्मा की शक्ति चेतना के रूप में व्यक्त होती है। वास्तव में चेतना ही आत्मा के अस्तित्व का परिणाम है। यह भगवद्गीता का ही विचार नहीं बल्कि सभी वैदिक साहित्य का सारांश है। - शंकराचार्य के संप्रदाय के निर्विशेषवादी और कृष्ण भगवान् से आई हुई गुरु-परम्परा के हम वैष्णव लोग आत्मा के अस्तित्व को समझते हैं,परन्तु बुद्ध मत के विचारक इसे नहीं समझते हैं। बुद्ध मतवाले कहते हैं कि भौतिक पदार्थों के मिश्रण की किसी विशेष स्थिति से चेतना उत्पन्न होती है। परन्तु इस विचार का खण्डन इस तरह किया जा सकता है कि हमारे पास सभी भौतिक पदार्थ होने पर भी हम चेतना उत्पन्न नहीं कर सकते हैं। मरे हुए व्यक्ति के शरीर में सभी तत्त्व उपस्थित होते हैं, परन्तु हम उस व्यक्ति में चेतना जाग्रत नहीं कर सकते हैं। यह शरीर यन्त्र की भाँति नहीं है। जब यन्त्र का कोई भाग टूट जाता है तो हम उसे बदल सकते हैं और यन्त्र फिर काम करेगा, परन्तु जब शरीर टूट जाता है, चेतना शरीर छोड़ देती है तो टूटे हुए