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________________ ५० हैं कि उन्होंने यह "शब्द" (यानि ध्वनि अवतार) युग धर्म के रूप में दिया है। यही इस युग की आत्म निर्वाण की विधि है । इस विधि के लिए किसी विशेष योग्यता की आवश्यकता नहीं है, हमें संस्कृत भाषा जानने की भी आवश्यकता नहीं है । हरे कृष्ण की ध्वनि इतनी शक्तिशाली है कि कोई भी बिना संस्कृत भाषा के ज्ञान के कीर्तन प्रारम्भ कर सकता है : वेदेषु यज्ञेषु तपःसु चैव दानेषु यत्पुण्यफलं प्रदिष्टम् । अत्येति तत्सर्वमिदं विदित्वा योगी परं स्थानमुपैति चाद्यम् ॥ (भ.गी. ८:२८ ) "जो भक्ति योग के मार्ग को स्वीकार करता है वह वेद के अध्ययन, यज्ञ, तपस्या, दान, पुण्य कर्म, ज्ञान योग या कर्म योग के फलों से वश्वित नहीं रहता है वह अन्त में परम निवास स्थान पहुंचता है । यहाँ कृष्ण भगवान् कहते हैं कि वेदों के अध्ययन का उद्देश्य जीवन का अन्तिम उद्देश्य पाना है । वह भगवान के पास वापस जाना है। सभी देश के सभी शास्त्रों का यही उद्देश्य है । यही सभी धार्मिक सुधारकों और आचार्यों को सन्देश है । उदाहरण के लिए पाश्चात्य देश में इशु ख्रिस्त ने भी इसी सन्देश का प्रचार किया था । इसी प्रकार बुद्ध और मोहम्मद ने भी । कोई यह मत नहीं देता है कि इस संसार में सदैव रहने का प्रबन्ध करो । विभिन्न देशकाल, परिस्थिति या शास्त्र के कारण थोड़ी सी भिन्नता भले ही हो परन्तु मुख्य द्धान्त यह है कि
SR No.032172
Book TitleJanma Aur Mrutyu Se Pare
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA C Bhaktivedant
PublisherBhaktivedant Book Trust
Publication Year1977
Total Pages64
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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