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तुकबन्दी या शारीरिक कसरतों से नहीं बल्कि बिना कर्म फल की इच्छा वाली भक्ति से ही पाये जा सकते हैं।
पुरुष क्या है ? परम पुरुष कैसे हैं ? 'यस्यान्तःस्थानि भूतानि येन सर्वं इदम् ततम्'-हर चीज और हर जीव उनके अन्दर हैं परन्तु वे उनके बाहर हैं सब जगह उपस्थित हैं। यह कैसे है ? वे ठीक सूर्य की भाँति हैं जो एक स्थान पर स्थिर है परन्तु फिर भी वह अपनी किरणों से हर जगह उपस्थित है। यद्यपि भगवान् अपने परम निवास स्थान में हैं परन्तु उनकी शक्तियाँ सब जगह विस्तृत हैं। न वे अपनी विभूति से ही भिन्न हैं जैसे सूर्य और उसकी किरण एक दूसरे से भिन्न नहीं हैं। क्योंकि कृष्ण भगवान् और उनकी शक्ति विभिन्न नहीं है इसलिए यदि हम भक्ति योग में प्रगति कर लें तो हम कृष्ण भगवान् को हर जगह देख सकते हैं।
प्रेमांजनच्छुरित भक्ति विलोजनेन। सन्तः सदैव हृदयेषु विलोकयन्ति ।।
. (ब्रह्म संहिता ५:३८). “मैं आदि परमपुरुष गोविन्द की पूजा करता हूँ जिन्हें अनन्य भक्त जिनकी आँखें भगवान् के प्रेम के काजल से भरी होती हैं वे उन्हें अपने हृदय में देखते हैं।" ____ जो भगवान् के प्रेम से भरे होते हैं वे भगवान् को लगातार अपने समक्ष देखते हैं। ऐसा नहीं है कि कल रात्रि को हमने भगवान् को देखा था और अब वे नहीं हैं। नहीं, जो कृष्ण भावनामय हैं उनके लिए भगवान् सदैव उपस्थित हैं और लगातार देखे जा सकते हैं। हमें देखने के लिए योग्य आँखें बनानी हैं।
इस सांसारिक बन्धन के कारण तथा इन भौतिक इन्द्रियों के ' आवरण के कारण हम नहीं समझ सकते हैं कि आत्मा क्या है, परन्तु यह अज्ञान हरे कृष्ण के कीर्तन की विधि से हटाया जा सकता है। यह कैसे है ? सोता हुआ व्यक्ति शब्द की ध्वनि से जगाया जा सकता है।