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________________ २६ धाम को पा लेता है वह फिर जन्म नहीं लेता है। इस विश्व का विभाजन ऊँचे, मध्यम और नीचे लोकों में है। पृथ्वी को मध्यम लोकों का सदस्य माना जाता है। कृष्ण भगवान कहते हैं कि यदि कोई सबसे ऊँचे लोक, जिसे ब्रह्म लोक कहते हैं, उसमें पहुँच जाये फिर भी वहाँ भी जन्म और मृत्यु का चक्र चलता है। विश्व के हर लोक जीवों से पूर्ण हैं । हमें यह नहीं सोचना चाहिए कि हम यहाँ हैं और अन्य लोक खाली हैं। अपने अनुभव से हम देख सकते हैं कि इस पृथ्वी में कोई स्थान जीवों से खाली नहीं है। यदि हम भूमि को गहरा खोदें तो हम कीड़े पायेंगे, यदि हम पानी में नीचे जायें तो मछलियाँ पायेंगे और यदि हम आकाश में जाएँ तो बहुत सारी चिड़ियाँ मिलेंगी। तो यह सारांश निकालना कि अन्य लोकों में कोई जीव नहीं है, यह कैसे सम्भव है ? परन्तु कृष्ण भगवान् कहते हैं कि यदि हम उन लोकों में पहुँचें जहाँ महान् देवता लोग रहते हैं, फिर भी वहाँ हमारी मृत्यु होगी। पुनः कृष्ण भगवान् दोहराते हैं कि जो-उनके लोक में पहुँच जाता है, वह फिर जन्म नहीं लेता है। हमें आनन्द और ज्ञान से पूर्ण सनातन जीवन पाने के लिए गम्भीर होना चाहिए। हम भूल गये हैं कि यही वास्तव में हमारे जीवन का उद्देश्य है और यही वास्तविक स्वार्थ है। हम क्यों भूल गये हैं ? हम केवल सांसारिक चमक-ऊँचे भवन, बड़े कार्यालय, राजनैतिक क्रीड़ा के धोखे में बँध गये हैं जबकि हम समझते हैं कि हम कितनी ही बड़ी इमारतें क्यों न बना लें, हम वहाँ अनन्त समय तक नहीं रह सकते हैं। हमें अपनी शक्ति को बड़े-बड़े कारखाने या शहर बनाने में नष्ट नहीं करना चाहिए, क्योंकि यह हमें प्रकृति के बन्धन में और बाँधेगी। हमें अपनी शक्ति का उपयोग कृष्ण भावना में प्रगति करके कृष्ण लोक जाने के लिए करना चाहिए। कृष्ण चेतना एक धार्मिक सिद्धान्त मात्र या आध्यात्मिक प्रतिक्रिया मात्र ही नहीं है, बल्कि यह जीव का अत्यन्त अपरिहार्य अंश (अङ्ग) है।
SR No.032172
Book TitleJanma Aur Mrutyu Se Pare
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA C Bhaktivedant
PublisherBhaktivedant Book Trust
Publication Year1977
Total Pages64
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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