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________________ २७ हैं कि वे दुःख पा रहे हैं। मनुष्यों को विचारशील जानवर कहते हैं परन्तु उसकी विचारशीलता का उपयोग दुःखों से मुक्ति पाने की जगह, जानवरों के गुणों को बढ़ाने में लगाया जाता है। यहाँ कृष्ण भगवान साफ-साफ कहते हैं कि जो उनके पास पहुँच जाता है वह दुःख पाने के लिए फिर जन्म नहीं लेता है। वे महान् आत्माएँ जो उनके पास गये हैं, उन्हें जीवन की सबसे बड़ी सिद्धि मिल गई हैजो हर जीवों को दुःखों से छुटकारा दिलाती है। कृष्ण भगवान् और सामान्य व्यक्ति में एक भिन्नता यह है कि सामान्य व्यक्ति एक समय में एक स्थान पर ही हो सकता है परन्तु कृष्ण भगवान् सारे विश्व में हर जगह एक ही समय पर उपस्थित हो सकते हैं और साथ-साथ अपने लोक में भी । अलौकिक जगत् में कृष्ण भगवान् का लोक, गो-लोक वृन्दावन कहलाता है। भारत में वृन्दावन वही अलौकिक गो-लोक वृन्दावन पृथ्वी पर उतर कर आया है। जब कृष्ण भगवान् अपनी अन्तरङ्ग शक्ति से उतर कर आते हैं तो उनका निवास स्थान भी पृथ्वी पर उतर कर आता है। दूसरे शब्दों में कृष्ण भगवान् जब इस पृथ्वी पर उतरते हैं तो वे किसी विशेष जगह में ही आते हैं। और उसी समय कृष्ण भगवान् अपने निवास स्थान वैकुण्ठ के अलौकिक वातावरण में भी रहते हैं। इस श्लोक में कृष्ण भगवान् घोषणा करते हैं कि जो उनके निवास स्थान वैकुण्ठ में आता है उसे इस संसार में फिर जन्म नहीं लेना होता है। ऐसे व्यक्ति को महात्मा कहते हैं। पाश्चात्य देश में महात्मा शब्द साधारणतया महात्मा गाँधी से सम्बन्धित माना जाता है। परन्तु हमें समझना चाहिए कि महात्मा राजकीय नेताओं की उपाधि नहीं है। बल्कि महात्मा से तात्पर्य प्रथम श्रेणी के कृष्ण भावनामय व्यक्ति से है जो कि कृष्ण लोक जाने के योग्य है। महात्मा की पूर्णता यह है कि मनुष्य योनि के जीवन और प्रकृति की देन का उपयोग जन्म और मृत्यु के चक्र से मुक्ति पाने के लिए करना।
SR No.032172
Book TitleJanma Aur Mrutyu Se Pare
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA C Bhaktivedant
PublisherBhaktivedant Book Trust
Publication Year1977
Total Pages64
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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