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________________ २४ नम्र बनना चाहिए और भगवद् गीता जैसे शास्त्रों से तथा आत्मदर्शी पुरुषों के होठों से सुनना चाहिए। ___ भगवद् गीता में अर्जुन भगवान् के विषय में कृष्ण भगवान् के होठों से ही सुन रहा है। इस प्रकार अर्जुन ने परमेश्वर को समझने की विधि 'नम्रता से सुनने' का उदाहरण उपस्थित किया है। हमारे लिए यही योग्य है कि हम भगवद् गीता को अर्जुन से या उनके उपयुक्त प्रतिनिधि, दैनिक जीवन में करना आनवाये है। भक्त प्राथना करता ह, “मरे प्रिय भगवान् ! आप अजित हैं, परन्तु इस विधि से, सुनने की विधि से आप जीत लिए गये हैं।" भगवान् अजित हैं परन्तु वे उन भक्तों द्वारा जीत लिए जाते हैं जिन्होंने मानसिक तर्क वितर्क करने छोड़ दिये हैं, और योग्य व्यक्ति से सुन रहे हैं। _ 'ब्रह्म-संहिता' के अनुसार ज्ञान पाने के दो मार्ग हैं-आरोह मार्ग - या चढ़ती हुई विधि और अवरोह मार्ग यानी उतरती हुई विधि। चढ़ती हुई विधि में कोई अपने द्वारा प्राप्त किये गये ज्ञान से ही प्रगति करता है। इसमें कोई इस प्रकार सोचता है “मैं किसी शास्त्र या महात्माओं की चिन्ता नहीं करूँगा, मैं ज्ञान की प्राप्ति ध्यान से या विचारों से पा लूँगा, इत्यादि"। इस प्रकार मैं भगवान् को समझ जाऊँगा। दूसरी विधि में ज्ञान पहुँचे हुए ऋषियों या मुनियों से स्वीकार करना है। बह्म-संहिता कहती है कि यदि कोई चढ़ती हुई विधि में, हवा या मन की गति से करोड़ों वर्ष चले तब भी वह ज्ञान नहीं पा सकेगा। उसके लिए यह विषय सदैव समझने में कठिन और अचिन्त्य रहेगा। परन्तु यह विषय भगवद् गीता में दिया गया है-अनन्य चेता:कृष्ण भगवान् कहते हैं कि नम्रता के साथ भक्ति के मार्ग में बिना हटे उनका स्मरण करो। जो इस प्रकार का भजन करता है-तस्याहम् सुलभ:-“मैं बहुत सरलता से पाया जा सकता हूँ।” यह विधि है। यदि कोई दिन में चौबीस घण्टे कृष्ण भगवान् के लिए कार्य करता है
SR No.032172
Book TitleJanma Aur Mrutyu Se Pare
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA C Bhaktivedant
PublisherBhaktivedant Book Trust
Publication Year1977
Total Pages64
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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