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सारा धन व्यय करने के बाद इस विधि से कुछ व्यक्ति ऊँचे लोकों में पहुँच सकते हैं परन्तु यह बहुत ही कठिन और उपयोग में न लाने योग्य विधि हैं। वैसे भी इस सांसारिक विश्व के बाहर तो किसी भी यान्त्रिक विधि से जाना सम्भव नहीं है। ___ साधारणतया ऊँचे लोकों में जाने की स्वीकृत विधि ध्यान योग या ज्ञान योग का अभ्यास है। भक्ति योग का अभ्यास इस संसार के किसी भी लोक में प्रवेश करने के लिए उपयक्त नहीं है। जो कृष्ण भगवान के सेवक हैं वे इस संसार में किसी भी लोक में प्रवेश करने के इच्छुक नहीं हैं क्योंकि वे जानते हैं कि वे यदि इस विश्व के किसी भी लोक में प्रवेश करें तो जन्म, जरा, मृत्यु और रोग के चार सिद्धान्त पायेंगे। ऊँचे लोकों में जीवन की अवधि इस पृथ्वी की अवधि से कहीं बड़ी हो सकती है परन्तु मृत्यु वहाँ भी है। सांसारिक विश्व से हमारा तात्पर्य उन लोकों से है जहाँ जन्म, मृत्यु, जरा और रोग होता है और अलौकिक विश्व से हमारा तात्पर्य उन लोकों से है जहाँ जन्म, मृत्यु, जरा और रोग नहीं होता है। जो बुद्धिमान हैं वे इस संसार के किसी भी लोक में प्रगति करने की चेष्टा नहीं करते हैं।
यदि कोई ऊँचे लोकों में यान्त्रिक विधि से प्रवेश करने का प्रयत्न करता है तो उसकी तुरन्त मृत्यु निश्चित है क्योंकि यह शरीर वातावरण का इतना बड़ा परिवर्तन सहन नहीं कर सकता है। परन्तु यदि कोई योग विधि से ऊँचे लोकों में प्रवेश करने का प्रयास करे तो उसे प्रवेश करने के लिए उपयुक्त शरीर मिल जायेगा। हम देख सकते हैं कि यह बात इस पृथ्वी पर भी प्रदर्शित होती है, हमारे लिए समुद्र में पानी के वातावरण में रहना सम्भव नहीं है और न तो जलचरों के लिए इस पृथ्वी पर रहना सम्भव है। इस प्रकार हम समझते हैं कि इस पृथ्वी पर भी हर किसी को किसी विशेष स्थान पर रहने के लिए, किसी विशेष प्रकार का शरीर चाहिए। इसी प्रकार अन्य लोकों में रहने के लिए भी किसी विशेष प्रकार का शरीर चाहिए। ऊँचे लोकों में