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यास हे छ : ' स०य । ! २॥ વિકટકમ સમૂહરૂપી વેરીના જીતનાર, ત્રણ લેકના નાથ, ત્રીસ અતિશયોના ધારક, જિનેન્દ્ર ભગવાન જે માર્ગ બતાવે છે તેનું शरण ग्रहण ७२.' ___ हे नाथ ! आपके अतिशय प्रभावके कारण आकाशमें दुंदुभि नाद होता है, वह दुंदुभि नाद निश्चय यही कहता है कि-हे भव्यजीवो! इस विकट कर्म समूहरूपी शत्रुओंको जीतने वाले, तीन लोकके नाथ, चौतीस अतिशयों के धारक जिनेन्द्र भगवान् जो मार्ग बतलाते है उस भार्गका अवलम्बन करो ॥४०॥
अत्युज्ज्वलं विजित-शारद-चन्द्र-विम्बं संमोदकं सकल-मंगल-मजु-कन्दम् ।