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स्पष्ट दर्शन से उन्हें यह विश्वास हुआ कि ये कोई देह धारी पुरुष है, और कुछ आगे जाने पर उन्हें ज्ञात हुआ कि ये शान्तस्वभाववाले कोई महान् पुरुष हैं। फिर अधिक समीप जाने पर उन्हें ज्ञान हुआ कि ये तो कोई दूसरे नहीं है किन्तु करुणाके सागर वीर जिनेश्वर भगवान् हैं ॥३५॥
देवै-रचित कुसुम-प्रकरस्य वृष्ट्या , दिङ्मंडलं सुरभितं भवतातिशेषात् । स्याद्वाद-चारु-रचना-वचना-वलीनां, वृष्ट्या भवन्ति भविनः प्रशमे निममाः ॥ ३६
(38) सभासमा के प्रभु ! सपना અતિશય મેહમાંથી પ્રેરાઈ દેવ અચિત્ત