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શ્રેષ્ઠ ચંદ્રકાન્ત મણિને પીગળાવે છે, તેવી રીતે આપના અનુપમ મહિમાનું શ્રવણ કરતા, ભવ્ય જીના હૈયામાંથી દયા અને અહિંસાનાં ઝરણાં કરે છે.
हे प्रभु ! जैसे चन्द्रमाके शीतल किरणोंकी प्रभासे पृथ्वी पर ही श्रेष्ठ चन्द्रकान्त मंणियां द्रवित होती है, अर्थात् पिघलाती है उसी प्रकार आपकी अनुपम महिमाके सुनने से, भव्योंके हृदय में से दया और अहिंसाका झरना झरने लगता है ॥३०।। दुःख-प्रधान-शिद-वर्जित हीयमाने,
काले सदा विषय-जाल-महा-कराले। भव्या भवत्प्रवचनं शिवदं जिनेन्द्र ! पीत्वात्मशान्तिमुपयान्ति नितान्तशुद्धाम्