________________
७७
कैरव - समूह (रात्रिविकासि कमलों) के अन्त
प्रकार हे
स्तलको विकासित करता है उसी जिनेन्द्र ! आप भी अपने उज्ज्वल गुणोंके प्रभाव से भव्यजनोंके हृदयरूपी कमलोको विकसित करते हैं, अर्थात् आपके गुणके माहात्म्य श्रवण से भव्यों का हृदय आनंदित हो जाता है ॥२९॥
अनुपम
शीतांशु - रश्मि निकर प्रसरा - नुषंगाद, यच्चन्द्रकान्त-मणयः परितो द्रवन्ति । तद्-वत्-त्वदीय-महिम-श्रवणेन भव्याः,
शान्ताः प्रवृद्धकरुणा द्रविता भवन्ति ॥ (30) हे प्रभु ! नेवी रीते यंद्रनां शीतण કિરણાની નિર્મળ પ્રભા, પૃથ્વી ઉપરના