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योंकी संगति से जो उन्मार्गगामी हो गये है, जिन्हें ज्ञानका लेश भी नहीं है, जिनका मन विषयरूपी सुरापान से घूम रहा है, ऐसे जीवोंको भी आपका प्रभाव सन्मार्ग पर लाता है ॥ २४ ॥ कल्प-द्रुमा-निव गुणांस्तव चन्द्र-शुभ्रान् ,
चिन्तामणीनिव समीहितकामपूर्णान् । ज्ञानादिकान् जन-मन -परितोष हेतून् , संस्मृत्य को न परितोष-मुपैति भव्यः ।।
(२५ डे प्रभु ! यद्र समान निर्माण, શીતલ, કલ્પવૃક્ષ અને ચિંતામણિ સમાન મનવાંછિત કામના પૂર્ણ કરનાર આપના ગુણની સ્તુતિ કરીને કણ ભવ્ય જીવા