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એવા મલિન સ્વરૂપી મિથ્યાત્વના દેષને આપને નિર્મળ પ્રભાવ સત્વર નાશ કરે છે. ___ हे प्रभु । यह मिथ्यात्व दोष, जो कि अनादि है, प्राणियोंके हृदयके भीतर जिसका निवास है, जो विषम अर्थात् भयंकर है, रागद्वेषादिरूप महाविषयों से जो भावित है, संसाररूपी भयानक अटवीं में जिसके कारण जीव निरन्तर परिभ्रमण कर रहे है और जिसका स्वरूप स्वभावतः मलिन है, ऐसे इस मिथ्यात्व दोषको आपका निर्मल प्रभाव क्षणमात्र में समूल नष्ट कर देता है ॥२३॥ प्रमादिका विषय-मोह-वशं गता ये, कर्तव्यमार्गविमुखाः कुमतिप्रसक्ताः ।