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जगत् में सभी प्रकारकी ऋद्धिसिद्धि मिलती है। इतना ही नही बल्कि नमस्कार करने वाला जीव, उस नमस्कारके फलस्वरूप पुण्यके उदय से क्रमशः तीर्थकर होकर जगत् कल्याण करने वाला हो जाता है और शाश्वत मोक्ष पदको प्राप्त करता है ॥१८॥ पृच्छामि नाव-मधुना मुनिनाथ ! नित्यं, _____प्राप्ता त्वया तरणतारणता हि कस्मात् ? । सा नोत्तरं वितनुते त्वमपि प्रयात-, स्तद् ब्रूहि कोऽस्ति परितोष-करस्तृतीयः॥१९॥
(१८ भुनियाना नाथ ! हुँ । શરીરરૂપી નૌકાને નિત્ય પૂછું છું કે આ તરવા તારાની કળા તું ક્યાંથી શીખી ?