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________________ ध्यानशतकम् दान दान द्वीप दीव देविंद देसविरय देसासंजय देहोवहिवोसग्ग दोस धम्म देवेन्द्र देशविरत देशासंयत देहोपषिव्युत्सर्ग धर्म, धर्म्य धम्मज्झाणी ८ धर्मध्यानिन नय नय नरय नियाण नरक निदान निव्वाण नीललेस्सा पएस निर्वाण नीललेश्या प्रदेश पर्याय प्रणिधान पज्जव भोजन आदि का प्रदान करना जम्बूद्वीप आदि देवों का प्रभु एक-दो मादि अणुव्रतों के धारक श्रावक देशतः संयम से रहित देह व उपाधि का त्याग १९२ प्रीति का प्रभाव ४६ धर्म-दुर्गति में पड़ते हुए जीव का उद्धारक, धर्म्य-श्रुत और चारित्ररूप धर्म से अनुगत ध्यान विशेष धर्मध्यान का ध्याता नैगम-संग्रहादि के भेद से नय अनेक प्रकार का है सीमन्तक आदि नारकबिल . इस तप या त्याग के आश्रय से मैं देवेन्द्र या चक्रवर्ती हो जाऊं, इस प्रकार की प्रार्थना निर्वाण, मोक्ष , ५, ६०१ लेश्याविशेष १४, २५ जीवप्रदेशों के साथ कर्म-पुदमलों का सम्बन्ध उत्पादादिरूप पर्याय प्राणिहिंसादि को न करते हुए भी उसके प्रति दृढ़ अध्यवसाय समस्त वस्तु का ग्राहक ज्ञान मद्यादि प्रमाद पीत लेश्या से विशुद्ध एक लेश्या . . . ज्ञानावरणादिरूप पाठ कर्मप्रकृतियां शैलेशीगत केवली का उत्कृष्ट शुक्लध्यान सयोग केवली की अतिशय विशुद्ध लेश्या जिसका विभाग न हो सके ऐसा पुद्गल विशेष बार-बार संक्लेशयुक्त भाषण पूर्वपठित सूत्र आदि का विस्मरण न होने देने तथा निर्जरा के निमित्त जो अभ्यास किया जाता है क्षुधा-तृषा आदि की वेदना स्वमत और परमत के तत्त्वबिषयक अभ्यास से उत्पन्न होने वाला प्रकृष्ट श्रम (प्रश्रम) अथवा कषायों की शान्ति रूप प्रशम भक्तिपूर्वक स्तुति प्रदेशसमूह वाले धर्मास्तिकायादि पांच द्रव्य पणिहाण पमाण पमाय पम्हलेस्सा पयइ परमसुक्क परमसुक्कलेस्सा परमाणु परिदेवन परियट्टणा प्रमाण प्रमाद पालेश्या प्रकृति परमशुक्ल परमशुक्ललेश्या परमाणु परिदेवन परावर्तन MS परीसह पसम परीषह प्रश्रम, प्रशम am पसंसणा पंचत्थिकाय प्रशंसना, प्रशंसा पंचास्तिकाय 4.
SR No.032155
Book TitleDhyanhatak Tatha Dhyanstava
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaribhadrasuri, Bhaskarnandi, Balchandra Siddhantshastri
PublisherVeer Seva Mandir
Publication Year1976
Total Pages200
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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