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________________ प्रथमं तावद् दैवसिकातिचारसूत्रं प्रदर्श्यते । ठाणे कम चकमणे आउत्ते अणाउत्ते हरिअकाय संघट्टे बीयकाय संघट्टे तसकाय संघट्टे छप्पईअ संघट्टे ठाणाओ ठाणं संकामिआ । देहरे गोचरी बाहिरभूमि मार्गे जता आवता स्त्रीतिर्यंचतणा संघट्टपरिताप - उपद्रव हुआ | दिवस मांहि चारवार सज्झाय, सातवार चैत्यवंदन कीधा नहि । प्रतिलेखना आघी पाछी भणावी, अस्तव्यस्त कीधी। आर्तध्यान रौद्रध्यान ध्यायां, धर्मध्यान- शुक्लध्यान ध्यायां नहि । गोचरी तणा बेतालीश दोष उपजता जोया नही। पांचदोष मांडली तणा टाल्या नहि । मात्रं अणपूज्यु लीधु, अणपूंजी भूमिकाए परठव्युं । परठवतां अणुजाणह जस्सुग्गहों न कीधो । परठव्या पुंठे वार त्रण वोसिरे वोसिरे न कीधुं । देहरा उपाश्रयमांहि पेसता निसीहि, नीसरतां आवस्सहि कहेवी विसारी। जिनभवने चोराशी आशातना, गुरु प्रत्ये तेन्रीश आशातना (कीधी ) । अनेरो दिवससंबंधी जे कोई पाप - दोष लाग्यो होय, ते सवि हुं मन-वचन-कायाए कटरी मिच्छामि दुक्कडं । अधुनाऽस्य वृत्तिः क्रियते।
SR No.032145
Book TitleSutra Rahasyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekharvijay
PublisherKamal Prakashan
Publication Year2018
Total Pages72
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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