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धिकारः]
भाषाटीकोपेतः।
(५७)
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___ भल्लातकलौहम् ।
बढ़ाता तथा शरीरके सिमटे व बालोंकी सफेदीको नष्ट करता है। चित्रकं त्रिफला मुस्तं ग्रन्थिक चविकामृता।।
यह श्रेष्ठ रसायन समस्त रोगोंको दूर करता है ॥ १६९-१७६॥ हस्तिपिप्पल्यपामार्गदण्डोत्पलकुठेरकाः ॥ १५९ ॥
अर्शीनी वटी। एषां चतुष्पलान्भागाजलद्रोणे विपाचयेत् । । रसस्तु पादिकस्तुल्या विडंगमरिचाभ्रकाः। भल्लातकसहस्रे द्वे छित्त्वा तत्रैव दापयेत् ॥१७०।।। गंगापालंकजरसे खल्वयित्वा पुनः पुनः॥१७७॥ तेन पादावशेषेण लोहपात्रे पचेद्भिषक् ।
रक्तिमात्रा गुदार्शोन्नी वढेरत्यर्थदीपनी । तुलाध तीक्ष्णलोहस्य घृतस्य कुडवद्वयम् ॥ १७१॥ रस ( रससिन्दुर ) १ तोला, वायविडंग, काली मिर्च अभ्रकध्यूषणं त्रिफलावहिसैन्धवं विडमौद्भिदम् । भस्म प्रत्येक ४ तोला जलपालकके रसमें अनेक बार घोटकर १ सौवर्चलविडंगानि पलिकांशानि कल्पयेत ॥१७२॥ रत्तीकी बनायी गयी गोली अग्निको दीप्त करती तथा अर्शको कुडवं वृद्धदारस्य तालमूल्यास्तथैव च।
| नष्ट करती है ॥ १७७ ॥ सूरणस्य पलान्यष्टौ चूर्ण कृत्वा विनिक्षिपेत् ॥१७३
परिवर्जनीयानि । सिद्धे शीते प्रदातव्यं मधुनः कुडवद्वयम् । प्रातर्भोजनकाले च ततः खादेद्यथाबलम् ॥ १७४॥
वेगावरोधस्त्रीपृष्ठयानमुत्कटकासनम् । अर्शीसि ग्रहणीदोष पाण्डुरोगमरोचकम् ।
___ यथास्वं दोषलं चान्नमर्शसः परिवर्जयेत् ॥ १७८ ॥ क्रिमिगुल्माश्मरीमेहाशूलं चाशु व्यपोहति ॥१७५/ मूत्रपुरीषादिवेगावरोध, मैथुन, घोड़े आदिकी सवारी, उटकरोति शुक्रोपचयं वलीपलितनाशनम् ।। कुरुआं बैठना तथा जिस दोषसे अर्श हो,तद्दोषकारक अन्नपानारसायनमिदं श्रेष्ठं सर्वरोगहरं परम् ॥ १७६॥ |दिका त्याग करना चाहिये ॥ १७८ ॥
इत्यर्थोऽधिकारः समाप्तः। चीतकी जड़, आमला, हर्र, बहेड़ा, नागरमोथा, पिपरामूल, चव्य, गुर्च, गजपीपल, लटजीराकी जड़, सफेद फूलकी सहदेवी, सफेद तुलसी प्रत्येक १६ तोला ले दुरकुचाकर दुरकुट किये हुए
अथानिमांद्याधिकारः। मिलावें २००० डालकर एक द्रोण (१२ से० ६४ तोला
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- दवद्वैगुण्यात् २५ सेर ९ छ०३ तो०) जलमें पकाना चाहिये ।। चतुर्थांश शेष रहनेपर उतार छानकर तीक्ष्ण लौहभस्म २॥ सेर, . चिकित्साविचारः। घी ३२ तोला, सोंठ, काली मिर्च, छोटी पीपल, त्रिफला, समस्य रक्षणं कार्य विषमे वातनिग्रहः। चीतकी जड़, सेंधानमक, विड़लवण, खारी नमक, काला नमक, तीक्ष्णे पित्तप्रतीकारो मन्दे श्लेष्मविशोधनम् ॥ १॥ बायविडंग-प्रत्येक चार चार तोला विधायरा १६ तोला, मुसली१६ समाग्निकी रक्षा करनी चाहिये, विषमाग्निमें वातनाशक, तोला, जमीकन्द ३२ तोला ले सबका महीन चूर्ण छोड़कर तीक्ष्णाग्निमें पित्तनाशक और मन्दाग्निमें कफशोधक चिकित्सा पकाना चाहिये । तैयार हो जानेपर उतार ठण्डाकर मधु ३२ करनी चाहिये ॥१॥ तोला छोड़कर रखना चाहिये । इसे प्रातः काल तथा भोजनके समय बलानुसार २ माशेसे १ तोला तक सेवन करना चाहिये।
हिंग्वष्टकं चूर्णम् । यह अर्श, ग्रहणीदोष, पाण्डुरोग, अरोचक, क्रिमिरोग, गुल्म, त्रिकटुकमजमोदा सैन्धवं जीरके द्वे पथरी, प्रमेह तथा शुलको शीघ्र ही नष्ट करता है । वीर्यको ___समधरणधृतानामष्टमो हिगुभागः।
प्रथमकवलभुक्तं सर्पिषा चूर्णमेत१ भल्लातक शुद्ध कर छोड़ना चाहिये। उसकी शोधन विधि। जनयति जठराग्निं वातरोगांश्च हन्यात् ॥२॥ आयुर्वेदविज्ञानमें निम्न लिखित है:-" भल्लातकानि पक्कानि समानीय क्षिपेज्जले । मज्जन्ति यानि तत्रैव शुद्धयर्थं तानि १ रससिन्दूरनिर्माणविधिः-" पलमात्रं रसं शुद्धं तावन्मानं योजयेत् ॥ इष्टिकाचूर्णनिकषर्मर्दनानिमलं भवेत् । अर्थात् भल्लातक तु गन्धकम् । विधिवत्कञ्जलीं कृत्वा न्यग्रोधाकुरवारिभिः॥ प्रथम जलमें छोड़ना चाहिये। जो जलमें डूब जावें, उन्हें भावनात्रितयं दत्त्वा स्थालीमध्ये निधापयेत् । विरच्य कवचीयन्त्रं निकालकर ईटके चूरेके साथ रगड़वाना चाहिये । पर हाथसे न वालुकाभिः प्रपूरयेत् ॥ दद्यात्तदनु मन्दाग्नि भिषग्यामचतुष्टयम् । रगड़कर किसी पात्र द्वारा रगड़ना अधिक उत्तम है। जायते रससिन्दुरं तरुणादित्यसनिभम् ॥"