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चक्रदत्तः।
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नष्ट करनेके लिये अपने शिष्योंके लिये बतलायी थी, अत एव गुरुवृष्यभोज्यरहितेष्वितरेषूपद्रवं कुर्यात् ॥५१॥ इसे 'काकायनबटी' कहते हैं ॥ ३८-४२॥
भस्मकमनेन जनितं पूर्वमगस्त्यस्य योगराजेन । माणिभद्रमोदकः।
भीमस्य मारुतेरपि येन तौ महाशनी जाती ॥५२॥
अग्निबलबुद्धिहेतुर्न केवलं सूरणो महावीर्यः। विडंगसारामलकाभयानां
प्रभवति शस्त्रक्षाराग्निभिविनाप्यर्शसामेषः ॥ ५३॥ पलं पलं स्यात्रिवृतस्त्रयं च ।
श्वयथुश्लीपदजिद्रहणीमपि कफवातसम्भूताम् । गुडस्य षड् द्वादशभागयुक्ता
नाशयति वलीपलीतं मेधां कुरुते वृषत्वं च ॥५४॥ मासेन त्रिंशद गुटिका विधेयाः ॥४३॥
हिक्कां श्वासं कासं सराजयक्ष्मप्रमेहांश्च ।। निवारणे यक्षवरेण सृष्टः
प्लीहानं चाथोग्रं हन्ति सदैतद्रसायनं पुंसाम्॥५५॥ समाणिभद्रः किल शाक्यभिक्षवे। अयं हि कासक्षयकुष्टनाशनो
जमीकन्द १६ भाग, चीतकी जड़ ८ भाग, सोंठ ४ भाग,
मिर्च २ भाग, त्रिफला, छोटी पीपल, पिपरामूल, तालीसपत्र, भगन्दरप्लीहजलोदरार्शसाम् ॥४४॥
| भिलावां, वायविडङ्ग प्रत्येक ४ भाग, स्याहमुसली ८ भाग, यथेष्टचेष्टान्नविहारसेवी
विधायरा १६ भाग, भांगरा तथा छोटी इलायची प्रत्येक २भागअनेन वृद्धस्तरुणो भवेञ्च ॥ ४५ ॥
सबका चूर्णकर द्विगुण गुड़ मिला गोली बनाकर इसे धनी पुरुवायविडङ्ग, आमला, बड़ी हर्र प्रत्येक ४ तोला, निसोथ १२/पोंको सेवन करना चाहिये । गरीब लोगोंको इसे न खाना तोला. सब कूट छान २४ ताला गुड़ मिलाकर ३० गोली चाहिये, क्योंकि गुरु तथा वाजीकर द्रव्ये न खानेसे यह बनाना चाहिये । एक गोली प्रति दिन सेवन करना चाहिये। उपद्रव करता है । इस प्रयोगने प्रथम अगस्त्य यह माणिभद्र ' नामक गोली किसी यक्षने शाक्य भिक्षुके तथा भीम हनुमानके भस्मक उत्पन्न कर दिया था, जिससे लिये बतलायी थी। यह कास, क्षय, कुष्ठ, भगन्दर, प्लीहा, वे अधिक भोजन करनेवाले हए । यह अग्नि, बल, बद्धि तथा जलोदर तथा अशको नष्ट करती है । इसमें किसी प्रकारका पर-वीर्यको बढ़ता है, और शस्त्र क्षारादिके विना ही. अर्शको नष्ट हेज नहीं है । इसके सेवनसे वृद्ध पुरुष भी जवान हो जाता है|
करता है । सूजन, स्लीपद तथा कफवात-जन्य ग्रहणीको अर्थात् वाजीकरण भी है ॥ ४३-४५॥
नष्ट करता है । शरीरकी झुर्रियां तथा बालोंकी सफेदीको
दूर करता है । मेधा तथा मैथुनशक्तिको बढ़ाता है । स्वल्पशूरणमोदकः।
हिचकी, श्वास, कास, राज्जयक्ष्मा, प्रमेह तथा बढ़े हुए मरिचमहौषधचित्रकसुरणभागा यथोत्तरं द्विगुणाः। प्लीहाको यह नष्ट करता तथा रसायन है ॥४८-५५ ॥ सर्वसमो गुडभागःसेव्योऽयं मोदकः प्रसिद्धफलः ॥४६ ज्वलनं ज्वलयति जाठरमुन्मूलयति शूलगुल्मगदान् ।
सूरणपिण्डी। निःशेषयति श्लीपदमशास्यपि नाशयत्याशु ॥४७॥
| चूर्णीकृताः षोडश सूरणस्य काली मिर्च १ भाग, सोंठ २ भाग, चीतकी जड़ ४
___ भागास्ततोऽर्धेन च चित्रकस्य । भाग, जमीकन्द ८ भाग, गुड़ १५ भाग-सब मिलाकर
महौषधाब्दी मरिचस्य चैको गोली बनानी चाहिये । इसका फल प्रसिद्ध है। अग्निको दीप्त
गुडेन दुर्नामजयाय पिण्डी ।। ५६॥ करती है, उदररोग, शूल, गुल्म, लीपद तथा अर्श को शीघ्र ही। नष्ट करती है ॥ ४६॥ ४७ ॥
पिण्डयां गुडो मोदकवत्पिण्डत्वापत्तिकारकः॥५७॥
सूरणका चूर्ण १६ भाग, चीतकी जड़ ८ भाग, सोंठ, बृहच्छूरणमोदकः।
नागरमोथा, काली मिर्च-प्रत्येक एक भाग, चूर्णकर गुड़ सरणषोडशभागा वढेरष्टौ महौषधस्यातः। मिला गोली बनाकर अर्शके नाशार्थ सेवन करना चाहिये। अर्धन भागयुक्तिर्मरिचस्य ततोऽपि चार्धेन ॥४८॥ इसमें गुड़ मोदकके समान अर्थात् समस्त चूर्णसे दूना छोड़ना त्रिफलाकणासमूलातालीशारुष्करक्रिमिन्नानाम् । चाहिये ॥ ५६ ॥ ५५ ॥ भागा महोषधसमा दहनांशा तालमूली च ॥४९॥ भागः सूरणतुल्यो दातव्यो वृद्धदारुकस्यापि ।
व्योषायं चूर्णम् । भंगेले मरिचांशे सर्वाण्येकत्र संचूर्ण्य ॥५०॥ | व्योषाग्न्यरुष्करविडंगतिलाभयानां द्विगुणेन गुडेन युतः सेन्योऽयं मोदकः प्रकामधनैः।। चूर्ण गुडेन सहितं तु सदोपयोज्यम् ।