________________
धिकारः]
_ भाषाटीकोपेतः।
(२९)
Horror
किरातादिचूर्णद्वयं क्वाथद्वयं च ।। आमातिसारमें प्रथम लंघन तथा पाचन कराना चाहिये, किराताब्दामृताविश्वचन्दनोदीच्यवत्सकैः।
लंघनके अनन्तर, शास्त्रोक्त द्रव पदार्थ भोजनके लिये देना
चाहिये । बलवान पुरुषके लिये एक लंघन छोड़कर अन्य शोथातिसारशमनं विशेषाज्ज्वरनाशनम् ॥ २८॥ औषध नहीं है। लंघन बढे हुए दोषोंको शान्त तथा आमका किराताब्दामृतादाच्यमुस्तचन्दनधान्यका पाचन करता है ॥४॥५॥ शोथातीसारतृड्दाहशमनो ज्वरनाशनः ॥ २९ ॥ । चिरायता, नागरमोथा, गुर्च, सोंठ, सफेद चन्दन, सुगन्ध- अतिसारे जलविधानम् । वाला तथा कुरैयाकी छालका चूर्ण-शोथातिसार तथा ज्वरको। ह्रीबेरशृंगवेराभ्यां मुस्तपर्पटकन वा। नष्ट करता है । इसी प्रकार चिरायता, नागरमोथा, गुर्च, नेत्र-| मस्तोदीच्यकृतं तोयं देयं वापि पिपासवे ॥ वाला, नागरमोथा, सफेद चन्दन व धनियांका चूर्ण शोथातिसार,
मुगन्धवाला, सोंठ अथवा नागरमोथा, पित्तपापड़ा अथवा प्यास, दाह तथा ज्वरको नष्ट करता है । अथवा इनका काथ
नागरमोथा, सुगन्धवालासे सिद्ध किया हुआ जल पिपासावाबनाकर देना चाहिये ॥२८॥२९॥
लेके लिये देना चाहिये । इति ज्वरातिसाराधिकारः समाप्तः ।
अतिसारेऽन्न विधानम् । अथातिसाराधिकारः।
युक्तऽन्नकाले क्षुत्क्षामं लघून्यन्नानि भोजयेत् ।।६।। औषधसिद्धाः पेया लाजानां सक्तवोऽतिसारहिताः।
वस्त्रप्रसुतमण्डः पेया च मसूरयूषश्च ॥७॥ अतिसारविशेषज्ञानम्।
गुर्वी पिंडी खरात्यर्थ लध्वी सैव विपर्यायान् । आमपक्कक्रमं हित्वा नातिसारे क्रिया यतः। । सक्तूनामाशु जीर्यंत मृदुत्वादवलेहिका ॥८॥ अतः सर्वातिसारेषु ज्ञेयं पक्कामलक्षणम् ॥ १॥ | जब रोगी भूखसे व्याकुल हो और अन्नका समय उपस्थित मजत्यामा गुरुत्वाद्विद् पक्का तूत्प्लवते जले । हो, तब हलके पदार्थ यथा ओषधि सिद्ध पेया अथवा खीळके विनातिद्रवसंघातशैत्यश्लेष्मप्रदूषणात् ॥२॥ . सत्तू अथवा कपड़ेसे छाना हुआ मण्ड अथवा पेया अथवा शकृद् दुर्गन्धि साटोपविष्टम्भार्तिप्रसेकिनः।।
मसूरका यूष देना चाहिये । सत्तओंकी कड़ी पिंडी भारी और विपरीतं निरामं तु कफात्पकं च मजति ॥३॥
| पतला अवलेह हलका होता है, अत एव हलके होनसे पतले • अतिसारमें आम-पक्वज्ञान विना चिकित्सा नहीं हो सकती..
| सत्त जल्दी हजम होते हैं ॥ ६-८॥ अतः समस्त अतीसारोंमें प्रथम आम-पक्क लक्षण जानना आहारसंयोगिशालिपादिः। चाहिये । अतः उसका निर्णय कर देते हैं। आमयुक्त मल भारी होनेके कारण जलमें डूब जाता है तथा पक्क मल तैरता।
शालिपर्णी पृश्निपर्णी बृहती कण्टकारिका ॥ ९ ।। है, पर बहुत पतले बहुत कठिन तथा शीतलता और कफसे | | बलाश्वदंष्ट्राबिल्वानि पाठानागरधान्यकम् ।। दूषित मलमें यह नियम नहीं लगता, अर्थात् अतिदव मल| एतदाहारसंयोगे हितं सर्वातिसारिणाम् ॥१०॥ आम सहित भी जलमें तैरता है और अतिकठिन तथा कफ सरिवन, पिठिवन, बड़ी कटेरी, छोटी कटेरी, खरेटी,
त पक्क भी जलमें डूब जाता है। आमयुक्त मल दुर्गन्धित गोखुरू, कच्चे वेलका गूदा, पाढी, सोंठ, धनियां-इन द्रव्योंका होता है । रोगीके पेटमें अफारा जकड़ाहट तथा पीडा होती है आहारके सिद्ध करने में प्रयोग करना चाहिये ॥९॥१०॥
और मुखसे पानी आता रहता है। इससे विपरीत लक्षण होनेपर निराम समझना चाहिये । कफसे दूषित मल पक्क भी.
__ अपरः शालिपादिः। बैठ जाता है॥ १-३॥
शालिपर्णीबलाबिल्वैः पृश्निपा च साधिता॥
दाडिमाम्ला हिता पेया पित्तश्लेष्मातिसारिणाम् ११ आमचिकित्सा। आमे विलंघनं शस्तमादी पाचनमेव च।
१ आमातिसारमें यद्यपि द्रव द्रव्य निषिद्ध है, यथा-" वर्जकार्य चानशनस्यान्ते प्रद्रवं लघु भोजनम् ॥४॥ येद्वैदलं शूली कुष्ठी मांसं क्षयी स्त्रियम् । द्रवमन्नमतीसारी सर्वे लंघनमेकं मुक्त्वा न चान्यदस्तीह भेषजं बलिनः। च तरुणज्वरी "॥ पर यहां ' प्रद्रव' पथ्य लिखा है, अतः प्रशब्द समुदीण दोषचयं शमयति तत्पाचयत्यपि च ॥५॥ शास्त्रोक्त द्रव द्रव्यका प्रतिपादक है।