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चक्रदत्तः।
विरा
मधुकादिशीतकषायः।
कषायं पाययेदेतपित्तश्लेष्मज्वरापहम् । मधुकं सारिवे द्राक्षा मधूकं चन्दनोत्पलम् । । दाहतृष्णारुचिच्छदिकासहृत्पार्श्वशूलनुत् ॥१२३ ।। काश्मरी पद्मकं लोधं त्रिफलां पद्मकेशरम्॥११६॥
छोटी कटेरी, गुर्च, भार्गी, सोंठ, इन्द्रयव, यवासा, चिरापरूषकं मृणालं च न्यसेदुत्तमवारिणि ।
यता, लाल चन्दन, नागरमोथा, परवलके पत्ते, कुटकी, इन
सबका क्वाथ बनाकर पिलाना चाहिये । यह पित्तकफज्वर, जलन, मधुलाजसितायुक्तं तत्पीतमुवितं निशि ॥ ११७ ॥
प्यास, अरुचि, वमन, कास तथा पशुलियोंके दर्दको नष्ट वातपित्तज्वरं दाहतृष्णामूर्छावमिभ्रमान् ।
करता है ॥ १२९-१२३॥ शमयेद्रक्तपित्तं च जीमूतानिव मारुतः ॥ ११८ ॥
वासारसः। मोरेठी, दोनों सारिवा, मुनक्का, महुआ, लाल चन्दन, नीलो-1 फर, खम्भार, पद्माख, पठानी लोध, आमला, हरे, बहेड़ा, सपत्रपुष्पवासाया रसःक्षौद्रसितायुतः। कमलका केशर, फालसा, कमलकी डण्डी सबकी दूर कुचा किया कफपित्तज्वरं हन्ति सास्रपित्तं सकामलम् ॥१२४॥ चर्ण रात्रि में षड्गुण गरम जलमें मिला मिट्टीके बर्तनमें रख साहके पत्ते तथा फूलोंसे निकाला गया स्वरस २ तोला, सबेरे शहद मिश्री और खील मिलाकर पीनेसे वातपित्तज्वर, शहद तथा मिश्री दोनों मिलाकर ६ मासे मिलाकर पीनेसे कफदाह, प्यास, मुर्छा, वमन, चक्कर और रक्तपित्तको इस प्रकार पित्तज्वर, रक्तपित्त तथा कामलाको नष्ट करता है ॥ १२४॥ नष्ट कर देता है जैसे वायु मेघोंके समूहको नष्ट कर देता है ॥ ११६-११८॥
पटोलादिक्वाथः। पित्तश्लेष्मज्वरचिकित्सा(पटोलादिकाथः) । पटोलं पिचुमर्दश्च त्रिफला मधुकं बला। पटोलं चन्दनं मूळ तिक्ता पाठामृतागणः। साधितोऽयं कषायः स्यात्पित्तश्लेष्मोद्भवे ज्वरे१२५ पित्तश्लेष्मारुचिच्छर्दिज्वरकण्डूविषापहः ॥११९॥
परवलके पत्ते, नीमकी छाल, आमला, हर्र, बहेड़ा, मोरेठी,
खरेटी इनका क्वाथ पित्तकफज्वरको नष्ट करता है ॥ १२५॥ परवलके पत्ते, लाल चन्दन, मूर्वा, कुटकी, पाढ़, गुर्च यह 'पटोलादि क्वाथ ' पित्त, कफ, अरुचि, वमन, ज्वर, खुजली |
अमृताष्टकक्वाथः। और विषको नष्ट करता है ॥ ११९ ॥
गुडूचीन्द्रयवारिष्टपटोलं कटुरोहिणी। - गुडूच्यादिक्वाथः।
नागरं चन्दनं मुस्तं पिप्पलीचूर्णसंयुतम् ॥ १२६॥
अमृताष्टक इत्येष पित्तश्लेष्मज्वरापहः । गुडूची निम्बधान्याकं पद्मकं चन्दनानि च । एष सर्वज्वरान्हन्ति गुडूच्यादिस्तु दीपनः॥
हृल्लासारोचकच्छर्दितृष्णादाहनिवारणः ॥ १२७ ।। हृल्लासारोचकच्छर्दिपिपासादाहनाशनः ॥ १२०॥
गुर्च, इन्द्रयव, नीमकी छाल, परवली पत्ती, कुटकी, सोंठ,
लाल चन्दन, नागरमोथा, इनका क्वाथ बना छोटी पीपलका गुर्च, नीमकी छाल, धनियां, पद्माख, लाल चन्दन,
| चूर्ण मिलाकर पीनसे पित्तकफज्वर, मिचलाई, अरुचि, वमन, यह · गुडूच्यादि क्वाथ ' समस्त ज्वरोंको नष्ट कर अग्निको
प्यास तथा दाह नष्ट होता है । इसे ' अमृताष्टक । कहते दीप्त करता है । मिचलाई, अरुचि, वमन, प्यास तथा दाहको
हैं ॥ १२६॥ १२७॥ नष्ट करता है ॥ १२० ॥ किरातपाठादि।
अपरः पटोलादिः। किरातं नागरं मुस्तं गुडूची च कफाधिके । । पटोलयवधान्याकं मुद्रामलकचन्दनम् । पाठोदीच्यमृणालैस्तु सह पित्ताधिक पिबेत् १२१॥ पैत्तिके श्लेष्मपित्तोत्थे ज्वरे तृट्छर्दिदाहनुत् ॥१२८॥ चिरायता, सोंठ, नागरमोथा, गुर्चका क्वाथ बनाकर पित्त- परवलकी पत्ती, यव, धनियां, मूंग, आमला, लाल चन्दन कफज्वरमें यदि कफकी अधिकता हो तो देना चाहिये । यदि इन सबका क्वाथ पित्तज्वर तथा कफपित्तज्वरमें देना चाहिये । पित्तकी अधिकता हो तो इहों ओषधियोंके साथ पाढ़ सुगन्ध- यह प्यास, वमन तथा दाहको नष्ट करता है ॥ १२८॥ वाला तथा कमलके फूल मिला क्वाथ बनाकर देना चाहिये १२१ . कण्टकार्यादिक्वाथः।
१ वासाके पत्तों व फूलोंको जलसे धो साफ कपड़से पोंछकर कण्टकायमृतामाङ्गीनागरेन्द्रयवासकम् । खूब महीन पीसना चाहिये, तभी स्वरस निकलेगा। पिस जानेपर भूनिम्बं चन्दनं मुस्तं पटोलं कटुरोहिणी ॥१२२॥ साफ कपड़ेसे छान लेना चाहिये।