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[स्त्रीरोगान्न्न्न्न्च्छ
न् -. - बहुमूत्रतामें इसे देना चाहिये । इसके प्रयोगसे स्त्रियां मोटे स्तनोंकी सूजनमें विद्रधिमें आम, पच्यमान व पक्व अवस्थाऊँचे कुचवाली कमल सदृश नेत्रवाली और सुन्दर होती में कही गयी चिकित्सा करे । तथा स्तनोंको सदा दुहते रहना हैं ॥४३-४८॥
|चाहिये ॥५६॥ क्षीराभिवर्धनम् ।
स्तनपीडाचिकित्सा। वनकाासिकेक्षणां मूलं सौवीरकेण वा। ।
विशालामूललेपस्तु हन्ति पीडां स्तनोत्थिताम् ।
निशाकनकफलाभ्यां लेपश्चापि स्तनातिहा ॥ ५७॥ विदारीकन्दं सुरया पिबेद्वा स्तन्यवर्धनम् ॥ ४९ ।।
इन्द्रायणकी जड़को पीसकर लेप करनेसे स्तनपीड़ा दूर होती दुग्धेन शालितण्डुलचूर्णपानं विवर्धयेत् । ।..
है। इसी प्रकार हल्दी व धतूरेके फलोंका लेप स्तनपीडाको नष्ट स्तन्यं सप्ताहतः क्षीरसेविन्यास्तु न संशयः॥५०॥ करता है ॥ ५७॥ जङ्गली कपासकी जड़ और ईखकी जड़के चूर्णको काजीके
स्तनकठिनीकरणम् । साथ अथवा विदारीकन्दको शरावके साथ दूध बढ़ानेके लिये पीना चाहिये । दूधका सेवन करनेवाली और दूधके ही साथ |
मूषिकवसया शूकरगजमहिषमांसचूर्णसंयुतया । शालिचावलके चूर्णको फाकनेवाली स्त्रीका दूध ७ दिनमें निःसन्देह | अभ्यङ्गमर्दनाभ्यां कठिनी पीनी स्तनौ भवतः ५८॥ बढ़ जाता है ॥ ४९ ॥५०॥
महिषीभवनवनीतं व्याधिबलोग्रास्तथैव नागबला । स्तन्यविशोधनम् ।
पिष्ट्वा मर्दनयोगात्पीनं कठिनं स्तनं कुरुते ॥ ५९ ।।
मूसेकी चर्बी, शुकर, हाथी व भैंसाके मांसके चूर्णके साथ हरिद्रादिं वचादिं वा पिबेत्स्तन्यविशुद्धये । स्तनोंपर मालिश तथा मर्दन करनेसे स्तन कड़े और मोटे होते तत्र वातात्मके स्तन्ये दशमूलीजलं पिबेत् ॥५१॥
हैं । इसी प्रकार भैंसीका मक्खन, कूठ, खरेटी, बच, व गङ्गेपित्तदुष्टेऽमृताभीरुपटोलं निम्बचन्दनम् ।
रनको पीसकर स्तनोंपर मर्दन करनेसे स्तन मोटे तथा कड़े होते धात्री कुमारश्च पिबेत्काथयित्वा सशारिवम् ॥५२॥ हैं ॥ ५८ ॥ ५९ ॥ कफे वा त्रिफलामुस्ताभूनिम्ब कटुरोहिणीम् ।।
श्रीपर्णीतलम् । धात्रीस्तन्यविशद्धयर्थ मद्यपरसाशिनी ॥५३॥ श्रीपर्णीरसकल्काभ्यां तैलं सिद्धं तिलोद्भवम् । भाञ्जीवचादारुपाठाः पिबेत्सातिविषाः शृताः॥५४॥| तत्तैलं तूलकेनैव स्तनस्योपरि धारयेत् ।। ६०॥ स्तन्यकी शुद्धिके लिये हरिदादि या वचादिका प्रयोग करे। पतितावुत्थिती स्त्रीणां भवेतां तु पयोधरी ।। ६१ ।। पातात्मक दूधमें दशमूलका जल पीवे । पित्तसे दूषित दूधमें खम्भारके रस और कल्कसे सिद्ध तिलतैलमें भिगोये धाय तथा कुमार, गुर्च, शतावरी, परवल, नीम, चन्दन और हुए फोहेको स्तनपर रखनेसे गिरे हुए स्तन उठ जाते शारिवाका क्वाथ पीवे । कफमें त्रिफला, नागरमोथा, चिरायता | हैं ॥६० ॥६॥ व कुटकीका क्वाथ पीवे । मूंगके यूषके साथ भोजन करे ।।
__कासीसादितैलम । अथवा भारङ्गी, बच, देवदारु, पाढ़ व अतीसका क्वाथ | पीवे ॥५१-५४ ॥
काशीसतुरगगन्धाशारिवागजपिप्पलीविपक्केन ।
| तैलेन यान्ति वृद्धिं स्तनकर्णवराङ्गलिङ्गानि ॥६२ ॥ स्तनकीलचिकित्सा।
काशीस, असगन्ध, शारिवा व गजपीपलसे सिद्ध तैलकुक्कुरमेञ्चुकमूलं चर्वितमास्ये विधारितं जयति। की मालिश करनेसे स्तन, कान, मुख और लिङ्ग बढ़ते सप्ताहात्स्तनकीलं स्तन्यं चैकान्ततः कुरुते ।। ५५॥ | हैं ॥ ६२ ॥ नागबलाकी जड़को मुखमें चबाकर स्तनमें लगानेसे ७ दिनमें
स्तनस्थिरीकरणम् । स्तनकील नष्ट होता और दूध बढ़ता है ॥५५॥ प्रथम? तण्डुलाम्भो नस्यं कुर्यात्स्तनी स्थिरौ।
स्तनशोथचिकित्सा। गोमहिषीघृतसहितं तैलं श्यामाकृताञ्जलिवचाभिः ६३ शोथं स्तनोत्थितमवेक्ष्य भिषग्विदध्या- |सत्रिकटुनिशाभिः सिद्धं नस्यं स्तनोत्थापनं परम् ।
द्यद्विद्रधावभिहितं त्विह भेषजं तत् । तनूकरोति मध्यं पीतं मथितेन माधवीमूलम् ॥६४॥ आमे विदह्यति तयेव गते च पाकं | प्रथम ऋतुकालमें गाय और भैंसीके घीके साथ चावलके तस्याः स्तनी सततमेव च निर्दुहीत ॥५६॥| जलका नस्य देनेसे स्तन स्थिर होते हैं । इसी तरह प्रिया
तात्थिती स्त्रीणां भवेतां तो
जल पीवे । पित्तसे दूषित व
धाय तथा कुमार,