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धिकारः]
__ 'भापाटीकोपेतः।
(१४६)
छोटी पीपल, सोंठ, वेलका गूदा, कलौंजी, चव्य, चीतकी |
नागरादिलेहः। जड़, हींग, अनारदाना, बिजोरा, निम्बू, बच, यवाखार, अम्ल
नागरतिलगुडकल्कं पयसा संसाध्य यः पुमानद्यात् । वेत, पुनर्नवा, काला नमक, सफेद जीरा, तथा इम्ली सब समान
उग्रं परिणतिशलं तस्यापति त्रिसप्तरात्रेण ॥४॥ भाग ले कल्क बना कल्कसे चौगुना घी और घीसे तिगुना दही |
सोंठ, तिल व गुड़का कल्क दूधके साथ पकाकर जो खाता तथा घीके समान भाग जल मिलाकर सिद्ध किया गया घृत
है, उसका परिणामशूल इक्कीस दिनके प्रयोगसे अवश्य नष्ट हो सेवन करनेसे गुल्म, अर्श, प्लीहा, हृद्रोग, पार्श्वशूल, योनिशूलको
जाता है ॥४॥ नष्ट करता तथा त्रिदोषको शान्त करता है। यह “दाधिकघृत" (दना संस्कृत) है।। ६२-६४ ॥
शम्बूकभस्म । शूलहरधूपः।
शम्बूकजं भस्म पीतं जलेनोष्णेन तत्क्षणात् । कम्बलावृतगात्रस्य प्राणायाम प्रकुर्वतः।
पक्तिजं विनिहन्त्येतच्छूलं विष्णुरिवासुरान् ॥ ५॥ कटुतैलाक्तसक्तूनां धूपः शूलहरः परः ॥६५॥ ।
शंख या घोंघाकी भस्म गरम जलके साथ पीनेसे पारणामकम्बल ओढ़कर प्राणायाम करते हुए कडए तैलमें साने | २०
शुलको इस प्रकार नष्ट करता है जैसे विष्णु भगवान् राक्षसोंका
"नाश करते हैं ॥५॥ ससूका धूप शूलको नष्ट करने में श्रेष्ठ है ॥६५॥ अपथ्यम्।
विभीतकादिचूर्णम् । व्यायाम मैथुनं मद्यं लवणं कटु वैदलम् । अक्षधाच्यभयाकृष्णाचूर्ण मधुयुतं लिहेत् । वेगरोधं शुचं क्रोधं वर्जयेच्छूलवानरः ॥६६॥ दना तु लूनसारेण सतीनयवसक्तुकान् ॥६॥ कसरत, मैथुन, मद्य, नमक, कटु द्रव्य, दाल, वेगावरोध, भक्षयन्मुच्यते शूलान्नरोऽनुपरिवर्तनात् । शोक तथा क्रोध शुलवान्को त्याग देना चाहिये ॥ ६६ ॥
बहेड़ा, विला, बड़ी हरका छिल्का तथा छोटी पीपलके इति शूलाधिकारः समाप्तः।
चूर्णको शहदके साथ मिलाकर चाटना चाहिये। तथा मक्खन निकाले दहीके साथ, मटर व यवके सत्तुओंके खानेसे परिणाम
शूल नष्ट हो जाता है ॥६॥ -a-on
तिलादिगुटिका । ___सामान्यचिकित्सा।
तिलनागरपथ्यानां भागं शम्बूकभस्मनाम् ॥७॥
द्विभागं गुडसंयुक्तं गुडी कृत्वाक्षभागिकाम् । वमनं तिक्तमधुरैर्विरेकश्चापि शस्यते ।
शीताम्बुपानां पूर्वाह्ने भक्षयेत्क्षीरभोजनः ॥ ८॥ बस्तयश्च हिताः शूले परिणामसमुद्भवे ॥१॥ | सायाह्ने रसकं पीत्वा नरो मुच्येत दुर्जयात् । तिक्त तथा मीठे द्रव्योंसे वमन तथा विरेचन कराना।
परिणामसमुत्थाच्च शूलाञ्चिरभवादपि ॥९॥ प्रशस्त है। और बस्तिकर्म कराना परिणामशलमें हितकर
तिल, सोंठ, तथा हर्र प्रत्येक एक भाग, शम्बूकभस्म २भाग
सबसे द्विगुण गुड़ मिलाकर १ तो० की गोली बना ठण्ढे जलके विडङ्गादिगुटिका।
साथ सबेरे खाना चाहिये तथा दूधका पथ्य लेना चाहिये। सायविडङ्गतण्डुलव्योषं त्रिवृहन्तीसचित्रकम् ।।
काल मांसरस पीना चाहिये । इससे मनुष्य कठिन पुराने परिसर्वाण्येतानि संस्कृत्य सूक्ष्मचूर्णानि कारयेत् ॥२॥णामशूलसे मुक्त हो जाता है ॥ ७-९ ॥ गुडेन मोदकं कृत्वा भक्षयेत्प्रातरुत्थितः ।
शम्बूकादिवटी। उष्णोदकानुपानं तु दद्यादनिविवर्धनम् । जयस्त्रिदोषजं शूलं परिणामसमुद्भवम् ॥३॥
शम्बूक व्यूषणं चैव पञ्चैव लवणानि च । वायविडंग, सोंठ, मिर्च, पीपल, निसोथ, दन्ती, तथा
समांशां गुडिकां कृत्वा कलम्बूरसकेन वा ॥१०॥ चीतेकी जड़ सब साफ कर चूर्ण करना चाहिये । फिर चूर्णसे
प्रातर्भोजनकाले वा भक्षयेत्तु यथाबलम् । दूना गुड़ मिला गोली बनाकर प्रातःकाल गरम जलके साथ| शूलाद्विमुच्यते जन्तुः सहसा परिणामजात् ॥११॥ खानेसे त्रिदोषजन्य परिणामशूल नष्ट होता है तथा अमि दीप्त शम्बूकभस्म, त्रिकटु तथा पांचों नमक, समान भाग लेकर होती है ॥२॥३॥
करेमुवा ( नाड़ी ) के रसमें गोली बनाकर प्रातःकाल था
अथ परिणामशूलाधिकारः।