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मापाठोपेतः।
• गुडस्य दत्त्वा शतमेतदनौ
केचन लेहाः। विपकमुत्तार्य ततः सुशीते ।
कोलमज्जाजन लाजातिक्ताकाश्चनगरिकम् ॥२॥ कटुत्रिक च द्विपलप्रमाणं
कृष्णा धात्री सिता शुण्ठी कासीसं दधि नाम च । पलानि षट् पुष्परसस्य तत्र ॥ ६६॥ पाटल्याः सफलं पुष्पं कृष्णा खजूरमुस्तकम् ॥३॥ क्षिपेचतुर्जातपलं यथानि
षडेते पादिका लेहा हिक्काना मधुसंयुताः। प्रयुज्यमानो विधिनावलेहः।
(१) बेरकी गुठली, काला सुरमा व खील । (२)कुटकी, वातात्मक पित्तकफोद्भवं च
सुनहला गेरू । ( ३ ) छोटी पीपल, आंवला, मिश्री, व सोंठ । द्विदोषकासानपि तांत्रिदोषान् ।। ६७ ॥ (४) कसीस व कैथा । (५)पाढलके फल व फूल । क्षयोद्भवं च क्षतजं च हन्यात
(६) पीपल, छुहारा नागरमोथा। ये छ: लेह श्लोकके एक
एक पादमें कहे गये शहद के साथ चाटनेसे हिकाको नष्ट करते सपीनसश्वासमुरःक्षतं च ।
हैं ॥२॥३॥यक्ष्माणमेकादशरूपमुग्रं भृगूपदिष्टं हि रसायनं स्यात् ॥ ६८ ॥
नस्यानि । कटेरीका पञ्चांग ५ सेर, जल एक द्रोण तथा बड़ी हरै १०० मधुक मधुसंयुक्त पिप्पली शर्करान्विता ॥४॥ मिलाकर पकाना चाहिये । चतुर्थीश बाकी रहनेपर उतार छान
नागरं गुडसंयुक्तं हिक्कानं नावनत्रयम् । हरें अलग निकाल काथमें मिला उसीमें गुड़ ५ सेर मिलाकर
स्तन्येन मक्षिकाविष्ठा नस्यं वालक्तकाम्बुना ॥५॥ पकाना चाहिये । अवलेह बन जानेपर उतार ठण्डनकर त्रिकटु
योज्यं हिक्काभिभूताय स्तन्यं वा चन्दनान्वितम् । प्रत्येक ८ तोला, शहद २४ तोला, दालचीनी, तेजपात, इलायची, नागकेशर प्रत्येक ४ तोला, मिलाकर रखना चाहिये। शहदके साथ मौरेठीका चूर्ण अथवा शक्करके साथ छोटी अनिके अनुसार इसका प्रयोग करनेसे समस्त कास, पीनस, पीपलका चूर्ण अथवा सोंठ गुड़के साथ अथवा मक्षिकाविष्ठा, श्वास, उरःक्षत तथा उग्र यक्ष्मा भी नष्ट होता है । ६५-६८॥ नीदुग्ध व लाक्षा रसके साथ अथवा बीदुग्ध, चन्दन मिलाकर
सूंघनेसे हिका नष्ट होती है ॥४॥५॥ इति कासरोगाधिकारः समाप्तः।
केचन योगा। मधुसौवर्चलोपेतं मातुलुङ्गरसं पिबेत् ॥६॥ हिक्कातस्य पयश्छागं हितं नागरसाधितम् । कृष्णामलकशुण्ठीनां चूर्ण मधुसितायुतम् ॥७॥
मुहुर्मुहुः प्रयोक्तव्यं हिक्कावासनिवारणम् ।। हिक्काश्वासयोश्चिकित्साक्रमः।
हिक्काश्वासी पिबेदाङ्गो सविश्वामुष्णवारिणा।
नागरं वा सिता भाङ्गी सौवर्चलसमन्वितम् ॥८॥ हिकाश्वासातुरे पूर्व तैलोक्त स्वेद इष्यते।
मधु व काला नमक मिला बिजौरे निम्बूका रस पीनेसे स्निग्धैर्लवणयोगैश्च मृदु वातानुलोमनम् ॥ १॥
अथवा सोंठसे सिद्ध दूध पीनेसे अथवा छोटी पीपल, आंवला, ऊर्ध्वाधःशोधनं शक्त दुर्बले शमनं मतम् ।
सोंठका चूर्ण शहदके साथ बारबार चाटनेसे अथवा सोंठके साथ हिक्का तथा श्वाससे पीड़ित रोगीको प्रथम तैलसे मालिश भाङ्गीका चूर्ण गरम जलके साथ पीनेसे अथवा सोंठ, मिश्री. कर स्वेदन करना चाहिये । तथा स्निग्ध व लवणयुक्त पदार्थोंसे भारजी, व काला नमक मिलाकर गरम जलसे उतारनेसे हिक्का. वायुका अनुलोमन करनेवाले वमन व विरेचन बलवान्को तथा श्वास नष्ट होते हैं ॥६-८॥ निर्बलको शमनकारक उपाय करने चाहिये ॥१॥
श्रृंग्यादिचूर्णम् ।
शृङ्गीकटुत्रिकफलत्रयकण्टकारी१ यह प्रयोग ग्रन्थांतरमें कुछ पाठभेदसे मिलता है। वहां “त्रिकटु" त्रिपल लिखा है। कटुत्रिक च त्रिपलप्रमाणम् ।'
भाी सपुष्करजटालवणानि पश्च ।
चूर्ण पिबेदशिशिरेण जलेन हिक्कापर शिवदासजीने प्रत्येक २ पल ही लिखा है। इस प्रकार ६ पल | कटुत्रिक होता है।
श्वासोवातकसनारुचिपानसेषु ॥ ९॥
अर्थ हिकावासाधिकारः।
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