________________
भाषाटीकोपेतः ।
धिकारः ]
(७७)
दशसूल, खरेटी, रास्ना, पोहकरमूल, देवदारु, व सांठका
राजयक्ष्मणि मलरक्षण प्रयोजनम् । शुक्रायत्तं बलं पुंसां मलायत्तं हि जीवितम् ॥ ४ ॥ क्वाथ -पसली तथा कन्धों व शिरकी पीड़ा व क्षयज कासादिकी शांतिके लिये पीना चाहिये ॥ १० ॥ तस्माद्यत्नेन संरक्षेद्यक्ष्मिणो मलरेतसी ।
ककुभत्वगाद्युत्कारिका ।
मनुष्योंका बल वीर्यके अधीन और जीवन मलके अधीन रहता है | अतः मल और वीर्यकी यत्नसे रक्षा करनी चाहिये ॥ ४ ॥
षडंगयूषः ।
सपिप्पली सवं सकुलत्थं सनागरम् ॥ ५ ॥ दाडिमामलकोपेतं सिद्धमाजरसं पिबेत् । तेन षड् विनिवर्तते विकाराः पीनसादयः ॥ ६॥ रसे द्रव्याम्बुपेयावत्सूपशास्त्रवशादिह ।
पलानि द्वादश प्रस्थे घनेऽथ तनुके तु षट् ॥ ७ ॥ मांसस्य वटकं कुर्यात्पलमच्छतरे रसे ।
छोटी पीपल, सोंठ, यव, कुलथी, अनारदाना, आमला - इनका जल बना बकरीका मांस छोड़ घीके साथ पकाकर यूष छानकर पिलाना चाहिये । इससे पीनस, स्वरभेद आदि नष्ट होते हैं । रस बनानेके लिये जिस भांति पेया आदिमें जल और औषधियां ( अर्थात् १ कर्ष औषधि १ प्रस्थ जल ) छोड़ी जाती हैं, उसी प्रकार छोड़ना चाहिये । यदि रस गाढ़ा बनाना हो, तो प्रस्थ जलमें १२ पल मांस और पतले ६ पल मांस और बहुत पतला बनानेमें १ पल ही मांस छोड़ना चाहिये। ( इसमें सोंठ व पपिल इतना छोड़े, जिससे कटुता आ जाय, आमला व अनारदाना इतना छोड़े, जिससे खट्टा हो जाय, यव और कुलथी यूषद्रव हैं, अतः इन्हें अधिकछोड़े ) ॥ ५-७ ॥ -
धान्यकादिकायः ।
धन्याकपिप्पलीविश्व दशमूलीजलं पिबेत् ॥ ८ ॥ पार्श्वशूलज्वरश्वासपीनसादिनिवृत्तये ।
धनियां, छोटी पीपल, सोंठ, तथा दशमूलका क्काथपार्श्वशूल, ज्वर, श्वास तथा पीनसादिकी निवृत्ति के लिये पिलाना चाहिये ॥ ८ ॥ -
अश्वगन्धादिक्वाथः । अश्वगन्धामृताभीरुदशमूली बलावृषाः । पुष्करातिविषा नन्ति क्षयं क्षीररसाशिनः ॥ ९ ॥ असगन्ध, गुर्च, शतावरी, दशमूल, खरेटी, अडूसा, पोहक - मूल तथा अतीसका क्वाथ पीने तथा दूध या मांसरस सेवन करनेसे क्षय नष्ट होता है ॥ ९ ॥
दशमूलादिक्वाथः । दशमूलबलारास्नापुष्करसुरदारुनागरैः कथितम् । पेयं पार्श्वासशिरोरुक्षयकासादिशान्तये सलिलम्
ककुभत्वङ्नागबलावानरिबीजानि चूर्णितं पयासे । पक्कं घृतमधुयुक्तं ससितं यक्ष्मादिकासहरम् ॥ ११॥ अर्जुनकी छाल, खरेटी तथा कौंच के बीजों का चूर्ण दूधमें पकाकर घी शहद व मिश्री मिलाकर खानेसे यक्ष्मा और कासादि नष्ट होते हैं ॥ ११ ॥
मांसचूर्णम् ।
पारावत्तकपिच्छागकुरङ्गाणां पृथक् पृथक् । मांसचूर्णमजाक्षीरं पीतं यक्ष्महरं परम् ।। १२ ।। कबूतर, बन्दर, बकरा, मृग-इनमें से किसी एकके मांसका चूर्ण खाकर बकरीका दूध पीनेसे यक्ष्मा नष्ट होता है ॥ १२॥ नागबलावलेहः ।
घृतकुसुमसारलीढं क्षयं क्षयं नयति गजबलामूलम् । दुग्धेन केवलेन तु वायसजङ्घा निपीतैव ॥ १३ ॥ नागबलाकी जड़का चूर्ण, घी और शहदके साथ चाटने से अथवा काकजंघा का चूर्ण केवल दूधके साथ पीने से क्षय नष्ट होता है ॥ १३ ॥
हद्वयम् ।
कृष्णाद्राक्षासितालेहः क्षयहा क्षीद्रतैलवान् । मधुसर्पिर्युतो वाश्वगन्धाकृष्णासितोद्भवः ॥ १४ ॥ छोटी पीपल, मुनक्का व मिश्रीको तैल व शहदके साथ चाटनेसे तथा असगन्ध, छोटी पीपल, व मिश्रीका चूर्ण घी व शहदके साथ चाटने से क्षत्र नष्ट होता है ॥ १४ ॥
नवनीतप्रयोगः |
शर्करामधुसंयुक्तं नवनीतं लिहन् क्षयी |
क्षीराशी लभते पुष्टिमतुल्ये चाज्यमाक्षिके ॥ १५ ॥ मक्खनको शहद व शक्कर के साथ चाटने से अथवा विषम भाग घी व शहद चाटने से क्षय नष्ट होता और पुष्टि होती है ॥ १५ ॥
सितोपलादिचूर्णम् । सितोपलातुगाक्षीरीपिप्पली बहुलात्वचः । अन्त्यादूर्ध्वं द्विगुणितं लेहयेत्क्षौद्रसर्पिषा ॥ १६ ॥ चूर्णितं' प्राशयेदेतच्छ्वासका सक्षयापहम् । सुप्तजिह्वारोचकिनमल्पानि पार्श्वशूलिनम् ॥ १७ ॥ हस्तपादांसदाहेषु ज्वरे रक्ते तथोर्ध्वगे ॥ १८ ॥