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समर्पण
प्राप्ति के बाद हार तरा जाय, ३३१ संघ (साधु,
नधान गणधर १ता है।
प्य।
रक्त न किया ा अभिव्यक्त
LU USDKK) KAKK) KKKAD KIDKOKAKKRODUOUS MOUS SUDU SUJIUIDE
मचकुद के पुष्प की भाँति अपने निर्मल जीवन द्वारा तथा अपनी सूक्ष्म - तीक्ष्ण व परिमार्जित बुद्धि-प्रतिभा द्वारा बाल-जीवों के लिए उपयोगी और उपकारी, सरस, सरल व सुबोध साहित्य की रचना कर जिन्होंने अनेक भव्यात्माओं को सन्मार्ग प्रदान किया है, ऐसे परमोपकारी हालार-रत्न प्राचार्यदेव श्रीमद् विनय कुदकुंद सूरीश्वरजी म. सा. की पुण्यात्मा को यह पवित्र-ग्रंथ समर्पित करते हुए हमें अत्यन्त ही प्रानन्द हो रहा है, जिनको अदृश्य कृपा से यह दुर्गम कार्य भी सुगम हो पाया है।
को साक्षात्/ लेय अनंत हैं
'जैन-भाषा 'गणी के ही
आधारा'
रहस्यार्थ/
कामों की -मुनि वज्रसेन विजय -मुनि स्नसेन विजय
ते हुए भी रहस्यों के
पे टीकाएँ KOKAKKO KOKYO KO KO KO KO KO KO KO KO KKK Tन होना