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अर्थ-समस्त पृथ्वीवासियों की पुण्यगशि को इकट्ठी करके असीम प्रतिभा से एक जीवित धारण करने वाली सरस्वती और बृहस्पति को जिन्होने अपने शरीर में एक रूप करके धारण किया है और अपने देह के दृष्टांत से जिन्होंने स्याद्वाद को सिद्ध किया है, ऐसे चन्द्रतुल्य श्री हेमप्रभु मेरी सद्बुद्धिरूपी सागर के प्रबोध (विकास) के लिए चन्द्र समान हों।
जो इस ग्रन्थ के अर्थ की सेवा के बहाने से श्री हेमचन्द्रमुनि का प्राश्रय लेते हैं, वे गौरव प्राप्तकर उज्ज्वल कलाओं के उचित स्थान रूप बनते हैं।
(५)
जयसिंहदेववयणाउ, निम्मियं सिद्धहेमवागरणं ।
नीसेससद्दलक्खरणनिहारमिभिरणा मुरिंगदेण ।। अर्थ-जयसिंह (सिद्धराज) राजा के वचन से इस मुनीन्द्र के द्वारा समस्त शब्द लक्षण के निधान स्वरूप सिद्धहैम व्याकरण रचा गया ।
किं स्तुमः शब्दपाथोधेहेमचन्द्रयतेर्मतिम् ।
एकेनापि हि येनेदृक् कृतं शब्दानुशासनम् ।। अर्थ- शब्द-समुद्र रूप हेमचन्द्र मुनि की बुद्धि की क्या स्तुति करें (कैसे स्तुति करें ? ) ? क्योंकि जिन्होंने अकेले ही ऐसे (महान्) शब्दानुशासन की रचना की है। (७) शब्द-प्रमाण-साहित्य-छन्दो-लक्ष्म-विधायिनां ।
श्रीहेमचन्द्रपादानां, प्रसादाय नमो नमः ।। अर्थ-शब्द, प्रमागा, साहित्य, छंद और व्याकरण के विधायक श्री हेमचन्द्र भगवंत के प्रसाद गुण को बारम्बार नमस्कार हो ।
-श्री रामचन्द्र सूरि तथा श्री गुणचन्द्र सूरि कृत नाट्यदर्पण (८) · तुलीय-तवरिणज्ज-कंती-सयवत्त-सवत्त-नयण-रमणिज्जा।
पल्लविय-लोयलोयण-हरिसप्पसरा सरीर-सिरी ॥१॥ पाबालत्तणो बिहु चारित्तं जरिणय-जण-चमक्कारं । बावीस-परिसहसहण-दुद्धरं तिव्व-तव पवरं ।। २ ।। मुणिय-विसमत्थसत्था-निमियवायरण-पमुह-गंथगणा । परवाइ पराजय-जायकित्तीमई जयपसिद्धा ।। ३ ।। धम्म पडिवत्तिजणणं, अतुच्छ-मिच्छत्त मुच्छिाणं पि । महु-खीरपमुह-महुरत्त-निम्मियं धम्मवागरणं ।। ४ ।। इच्चाइ गुणोहं हेमसूरिणो, पेच्छिऊण छेयजणो । सद्वहइ अदिट्ठ वि हु तित्थंकर-गरणहरप्पमुहे ।। ५ ।।