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5. श्रीमद् हेमचन्द्राचार्यजी ने व्याकरण के पांचों अंगों की रचना स्वयं ही की है । सूत्रपाठ, उणादिगणसूत्र लिंगानुशासन, हेमधातुपारायण और गणपाठ की रचना करके हेमचन्द्राचार्यजी ने व्याकरण को परिपूर्ण बना दिया है ।
6. व्याकरण के समस्त सूत्रों के Practical प्रयोग रूप ' द्वयाश्रय महाकाव्य' की भी रचना करके हेमचन्द्राचार्यजी ने एक भगीरथ कार्य किया है ।
'सिद्ध हेमचन्द्र शब्दानुशासनम्' पर विरचित अन्य टीका ग्रन्थ :
कर्त्ता
श्लोकप्रमाण
आ. रामचन्द्रसूरि
53000
आ. धर्मघोषसू
9000
ग्रन्थ
1 लघुन्यास
2. लघुन्यास
13. कतिचिद् दुर्गपदव्याख्या
4. न्यासोद्धार
5. लघुवृत्ति
6. हैमबृहद्वृत्तिद्वष्टिका
7. हैम व्याकरण द्वष्टिका 8. हैम ( प्राकृत) व्याकरण द्वन्दिका
9. हैम लघुवृत्ति द्वष्टिका
10. हैम अवचूरि 11. हैमचतुष्कपदवृत्ति 12. हैमव्याकरण दीपिका 13. हैमव्याकरणबृहद् अवचूर्णि
14. हैम व्याकरण अवचूरि
15.
"
16. प्राकृतदीपिका
17. प्राकृत अवचूरि
18. हैमदुर्गपदप्रबोध
19. हैमकारकसमुच्चय
20. हैमवृत्तिः
21. आख्यातवृत्तिः
आ. देवेन्द्र सूर
आ. कनकप्रभसूरि
श्री काकलकायस्थ
श्री सौभाग्य सागर
श्री विनयचन्द्र
श्री उदयसौभाग्यगणि
श्री मुनिशेखर
श्री धनचन्द्र
श्री उदयसागर
श्री जिनसागर
श्री अमरचन्द्रसूरि
अज्ञातकर्तृक
श्री रत्नशेखरसूरि
श्री हरिभद्रसूरि
श्री हरिप्रभसूरि
श्री वल्लभ पाठक
श्री प्रभसूर
"
आ. नंदसूर
लघुतामूर्ति :
कलिकाल सर्वज्ञ आचार्यदेव श्रीमद् हेमचन्द्रसूरिजी म. प्रकांड विद्वान् होने पर भी लघुता नम्रता की साक्षात् मूर्ति थे ।
अयोगव्यवच्छेद द्वात्रिंशिका में वे कहते हैं
क्त्र सिद्धसेनस्तुतयो महार्था, अशिक्षितालापकला व चैषा ।