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और चातुर्मास फाल दरम्यान तो उसने विशेष नियम अंगीकार किए
1. चार मास तक नियमित एकाशना का तप
2, चार मास तक वनस्पति (हरियाली) का त्याग ।
3. चार मास तक 5 विगई का त्याग
4. चार मास तक ब्रह्मचर्य का पालन
5. चार मास तक नगर बाहर नहीं जान ।
देवी चमत्कार
कुमारपाल के विविध नियम ग्रहण को सुनकर एक बार तुर्किस्तान के सम्राट् ने कुमारपाल के राज्य उपर आक्रमण करने की तैयारी कर दी । कुमारपाल महाराजा हेमचन्द्राचार्यजी के सांनिध्य में चर्चा कर रहे थे । दूत ने आकर शत्रुराजा के आगमन के समाचार दिए । कुमारपाल के लिए समस्या खड़ी हो गई । एक ओर प्रजा के रक्षण का प्रश्न और दूसरी ओर व्रत रक्षण का प्रश्न ।
कुमारपाल को दुविधा में देख हेमचन्द्राचार्यजी ने कहा 'राजन् ! चिंता क्यों करते हैं ? जो धर्म के प्रति समर्पित रहता हैं--धर्म उसकी रक्षा करता है। उसी समय हेमचन्द्राचार्य जीने ध्यान लगाया और देवी प्रभाव से यवन सम्राट् का पलंग आकाश मार्ग से उड़कर कुमारपाल के सामने
आ गया ।
थोड़ी ही देर बाद यवन सम्राट् की आँख खुली। अपने आपको शत्रु राजा के समक्ष देखकर
घबरा गया ।
अंत में कुमारपालने उसे अपने देश में जीव दया से पालन की शर्त पर मुक्त कर दिया ।
अभ्यास
स्तुति सुनकर कुमारपाल प्रसन्न होकर
कुमारपाल द्वारा व्याकरण का
एक बार किसी कवि ने आकर कुमारपाल की स्तुति की बोले 'राजा को मेघ की उपम्या अच्छी दी है।
राजा के इस वाक्य को सुनकर कपर्दी मन्त्री ने शर्म के अपना मुंह नीचा कर दीया ।
कुमारपाल ने इसका कारण पूछा। मन्त्री ने कहा, 'व्याकरण नहीं पढ़ने के कारण शब्दों के अशुद्ध प्रयोग से देशांतर में अपकीर्ति होगी इस शर्म से मैंने सिर नीचा कर दिया ।
इस घटना के बाद कुमारपाल ने संस्कृत व्याकरण सीखने का दृढ संकल्प किया और आचार्य श्री के शुभाशिष को प्राप्त कर उसने एक ही वर्ष में 'सिद्धहेम व्याकरण' का अभ्यास कर लिया....और उसके बाद तो उन्होंने संस्कृत भाषा में परमात्मा की भाववाही स्तुतियाँ भी रची ।
हेमचन्द्राचार्य जी की उपदेश वाणी से कुमारपाल ने अपने जीवन में