________________
कुमारपाल को अपनी भूल का पश्चाताप हुआ और दूसरे ही दिन उसने गुरुदेवश्री को राजसभा - में पधारने के लिए आमंत्रण भेजा ।
शासन प्रभावना के निमित्त को जानकर हेमचन्द्राचार्यजी राजसभा में पधारे । कुमारपाल ने उनका भव्य स्वागत किया और अपने अपराध की क्षमापना मांगकर गुरुदेवश्री को राज सिंहासन पर बैठने के लिए आग्रह करने लगा ।
गुरुदेव ने कहा : यह आसन हमारे लिए अनुचित हैं । गुरुदेव ! आप ही इस राज्य के स्वामी हो... यह राज्य स्वीकार कर मुझे कृतार्थ करे ।' आचार्यश्री ने कहा : हमें राज्य से कुछ भी प्रयोजन नहीं है....।' आपके उपकार के ऋण को में कैसे वापस लौटा सकता हुँ ? गुरुदेव ने कहा-'जैन धर्म की उन्नति करो।"
कुमारपाल ने हाथ जोड़कर गुरुदेव की आज्ञा को शिरोधार्य की और गुरुदेव श्री को प्रतिदिन धर्म सुनाने के लिए राजसभा में आने के लिए प्रार्थना की।
कुमारपाल की इच्छानुसार आचार्य श्री प्रतिदिन राजसभा में आकर धर्म का उपदेश देने लगे । आचार्यश्री की अमृतवाणी को सुनकर कुमारपाल महाराजा के हृदय में दिन प्रतिदिन धर्म के प्रति श्रद्धा बढने लगी।
माँ साध्वीजी ...हेमचन्द्राचार्य जी की माँ साध्वीजी प्रवर्तिनी श्री पाहिनीजी का स्वास्थ्य दिन-प्रतिदिन गिर रहा था ... फिर भी उसकी समाधि अत्यन्त ही अनुमोदनीय थी । हेमचन्द्राचार्य जी अपनी माता को समाधि देने के लिए समाधि दायक जिन वचनों का श्रवण कराया । अन्य श्रावक..श्राविका ने साध्वीजी पाहिनी के निमित्त अनेक विध पुण्यकर्म कहे और उस समय कलिकाल सर्वज्ञ हेमचन्द्राचार्य जी ने भी अपनी माँ साधी की समाधि के लिए तीन लाख नवीन श्लोक रचना करने का पुण्यकम कहा ।।
___माँ साध्वी के मुख पर प्रसन्नता छा गई और अत्यन्त ही समाधिपूर्वक उसने इस नश्वरदेह का त्याग कर दिया ।
जीबदया का उपदेश हेमचन्द्राचार्य जी को अमृतमयवाणी और उपदेश को सुनकर कुमारपाल ने जीवन भर के लिए मद्य-मांस-शिकार आदि सातों व्यसनों का त्याग कर दिया । 1 कुमारपाल ने कहा 'भगवंत ! आपका मेरे ऊपर जो उपकार हैं उसके ऋण को दूर करने के लिए .. मुझे आशा दीजिए ।
हेमचन्द्राचार्य जी ने कहा, राजन् ! यदि तेरे दिल में मेरे प्रति भक्ति हैं तो इन तीनों बातों का