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दफा ७५५]
स्त्रीधन क्या है
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या ज़िलेकी रवाजके अनुसार होगा विस्टोप्रसाद बनाम राधासुन्दरनाथ 16 W. R.C. R. 115. .
दायभागके सिवाय और सबका यह मत है कि विवाहके समय रिश्ते. दारों या दूसरे आदमियोंसे जो धन मिला हो वह भी स्त्रीधनमें शामिल है, देखो-कोलक डाइजेस्ट Chap 3 P. 659-560
(२) शुल्क-अर्थात् वह द्रव्य जो लड़केवाला लड़कीवालेको लड़की के लिये देता है। पहिले यह द्रव्य लड़कीके मूल्यके तौरपर उसके पिताको दिया जाता था परन्तु जब यह पृथा बर्जित हुई तो पिता यह द्रव्य लड़कीके वास्ते लेता है और दहेजमें लड़कीको दे देता है इसलिये यह धन स्त्रीका स्त्रीधन हो जाता है; देखो
गृहोपस्करवात्यानां दोत्या भरण कर्मणाम् मूल्यं लब्धं तु यत् किंचिच्छुल्कं तत् परिकीर्तितम् । कात्यायन
और देखो घोष हिन्दुला 2 ed P. 314.
बीरमित्रोदयके अनुसार शुल्क वह है जो दुलहन या विवाहिता स्त्रीको उसके घरके असबाय, आभूषण, गाय बैल आदिके बदलेमें दिया जाता है।
मदनरत्नमें यह बतायागया है कि घरेलू सामान आदिके मूल्यके तौरपर वरपक्षसे जो धन लिया जाय और जिसके बदले में कन्याका विवाह किया जाय वह शुल्क है। मिताक्षराकार कहते हैं कि
'शुल्क यद्गृहीत्वाकन्यादीयते' शुल्क वह है जिसको लेकर कन्याका विवाह किया जाय परन्तु इन दोनों ग्रन्थों में जो कुछ कहा है उसका मतलब यही है कि पिता या ऐसा ही और कोई कुटुम्बी शुल्कके तौरपर जो द्रव्य लेता है वह इसलिये लेता है कि वह द्रव्य कन्याको दे दिया जाय, यदि ऐसा न होता तो शुल्कको स्त्रीधन माननेका कोई कारण न था।
ब्यास-कहते हैं कि वरके घर वधूके लाने के लिये जो धन दिया जाय वह शुल्क है। मनु शुल्ककी निन्दा करते हुये कहते हैं कि यदि ऐसा धन लिया जाय तो वह स्त्रीधन है।
श्राददीत न शूद्रोऽपि शुल्कं दुहितरं ददन् । शुल्कं हि गृह्णन्कुरुते छन्नं दुहितृविक्रयम् । मनुः ६.६८.