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दफा ७३७-७३६ ]
खर्च पाने का अधिकार आदि
कानून इन्तकाल जायदाद एक्ट नं०४ सन् १८८२ ई० की दफा ६ (डी) के अनुसार नहीं होसकता । हां, भरण पोषणका जो खर्चा बकायेमें पड़ा हो उसका इन्तकाल होना सम्भव है, 33 Mad. 80.
(२) कुकी नहीं होसकती-भरण पोषण पाने का हक या गैरमनकूला जायदादकी वह आमदनी जो भरण पोषणके लिये मुकर्रर कीगयी हो किसी अदालती डिकरीसे कुर्क नहीं होसकती, देखो-ज़ाचता दीवानी १६:८ ई० की दफा ६० इस दफामें कहा गया है कि भरण पोषणका हक़ आगेका कुर्क नहीं किया जासकता। इसका यह अर्थ भी होता है कि यदि ऐसे खर्च का रुपया जमा हो तो कुर्क हो सकता है जैसा कि 33 Mad. 80 में कहा गया है, देखो--11 Bom 228938 Cal 13.
किसी हिन्दू स्त्रीको परवरिशके लिये दी गई जायदाद, उसका स्त्रीधन नहीं होती और इस प्रकारकी जायदादके इन्तकालका प्रभाव केवल उसके जीवनकालमें ही होता है, जगमोहनसिंह बनाम प्रयागनारायण 3 Pat. L. R 251; 6 Pat L. J. 206; ( 1925) P. HC.C. 140; 87 I. O. 4734 A. I. R. 1925 Put. 523. दफा ७३९ जायदादके इन्तकालसे हकका मारा जाना
(१) कोई भी हिन्दू जो हक़ मारनेकी नीयत न रखता हो अपनी जायदादका इन्तकाल करे तो उस जायदादमें कानूनन् जो लोग भरण पोषणका हक रखते हैं उनका वह हक्न मारा जा सकता है, परन्तु वह हन यदि पहिले से किसी इकरार या डिकरीके द्वारा निश्चित हो चुका हो तोनहीं मारा जायगा: देखो--27 Cal. 194, 27 Mad 45; 15 Cal. 292, 22 All. 326; 17 Mad. 268 लेकिन अगर वह इन्तकाल केवल किसीके हक मारनेकी नीयत से ही किया गया हो और जायदादका खरीदार भी उस नीयतसे परिचित हो तो इन्तकाल हो जानेपर भी हक्क नहीं मारा जायगा, देखो--12 Mad. 3347 23 Bom. 342.
(२) दान या घसीयत-अपनी विधवा और उन लोगोंके भरण पोषण का खर्च जिनको वैसा खर्च देने के लिये वह कानूनन् पाबन्द है, उन खचों के योग्य उचित जायदाद अलग करके ही हर एक हिन्दू अपनी जायदाद दान या वसीयतके द्वारा किसीको दे सकता है, बिना उचित प्रबन्ध किये नहीं दे सकता, देखो-देवेन्द्रकुमार राय चौधरी बनाम ब्रजेन्द्रकुमार राय 17 Cal. 886; 15 Cal 292; 8 Bom. H. C. A. C. 98512Mad.490;10Cal.638.
कोई हिन्दू वसीयतके द्वारा अपनी स्त्रीको भरण पोषणके हकसे वंचित नहीं रख सकता, देखो-12 C. W. M. 808. और न अपनी सब जायदाद विधवाके भरण पोषणका खर्च दिये बिना वसीयत या दानके द्वारा किसीको