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[ बारहवां प्रकरण
महज़ परवरिशकी रकम निश्चित करनेके प्रश्नमें, कमिश्नरके हवाले की आवश्यकता नहीं है । यह साधारण रीतिपर, खान्दानी हालात के लिहाज़ से जो शहादत द्वारा प्रगट हो निश्चित की जानी चाहिये - भीखूबाई बनाम हरीबा 49 Bom. 459; 27 Bom. L. R. 13; A. I. R. 1925 Bom. 153.
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भरण-पोषण
दफा ७३७ ख़र्च घटाया और बढ़ाया जा सकता है
पत्नी, या विधवा, व्यभिचारिणी हो जाय तो उसके भरण पोषण का खर्च बन्द किया जा सकता है । अगर भरण पोषणका खर्च लेने और देने वालोंकी हालत पहिलेकी अपेक्षा कम हो जाय तो खर्च की मुक़र्ररकी हुई रकम मैं कमी की जा सकती है । अगर डिकरीमें कोई खास व्यवस्था न हो तो कुक़ की कार्रवाई में भरण पोषणके खर्च की रक़म न तो बन्दकी जा सकती है और न कम की जा सकती है। अगर अन्न मंहगा होगया हो या खाने पीने के सामान महंगे हो गये हों, या पति धनवान होगया हो तो खर्चकी रक़म बढ़ाई जा सकती है, देखो - बंगरूअम्मल बनाम विजयमाची रेडीयर 22 Mad. 175; 9 W.R_CR. 152. जबकि गरीबी की हालत खर्च देने वालेके किसी क़सूर से नहीं बलि देवी कारण से उपस्थित होगयी हो तो खर्वकी मुक़र्रर रक्रम घटाई जा सकती है - राजेन्द्रनाथ राय बनाम पुतू सुन्दरी दासी 5 Cal. L. R. 18; W. R. P. C. 98. प्रत्येक वर्ष देते रहने के लिये भरण पोषणकी जो डिकरी हो उसका रुपया इजरा डिकरीकी कार्रवाईके द्वारा वसूल किया जा सकता है । जितने दिनों तक ऐसा खर्च दिया गया हो तमादीके यालसे उस डिकरीकी मियाद उतने दिनोंके बादसे गिनी जायगी, देखो - 19 Cal. 139; 38 Cal. 13; 12 Bom. 65.
कन्ना बनाम ऐतमा 12 Mad. 183; के मुक़दमेमें माना गया है कि जिस डिकरीमें केवल भरण पोषणका हक़ माना गया हो उस डिकरीका इजरा नहीं हो सकता । जिस डिकरीमें भरण-पोषणका हक़ किसी ऐसी जायदाद में माना गया हो कि जिस जायदादका इन्तक़ाल होगया हो और जिस आदमी के हक़में इन्तक़ाल हुआ हो उसके पाससे भी वह जायदाद निकल गयी हो तो फिर उस डिकरीका इजरा उस आदमी की ज़ात पर नहीं हो सकता जिसके मुक्काविलेमें डिकरी हुई थी, देखो --5 All 389.
दफा ७३८ हक़का इन्तक़ाल नहीं होसकता
( १ ) कोई स्त्री. या विधवा, अपने भरण पोषणके हक़का इन्तक़ाल नहीं करसकती -- अन्नपूर्णी नायिचर बनाम सामीनाथाचिट्टियर 34 Mad. 7, 9. में माना गया है कि आपसके इक़रार या डिकरीसे भरण पोषणका जो खर्च निश्चित हुआ हो उसका इन्तक़ाल होसकता है, परंतु ध्यान रहे कि