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दफा ७१६-७२१ ]
स्त्रियोंकी वरासत की जायदाद
वह समझौता जायदाद के लिये लाभकारी होगा, भावी वारिसों पर लाजिमी । राम अय्यर बनाम नारायण स्वामी अय्यर 23 L. W. 496; A. I. R. 1926 Mad 609.
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बंगाल हाईकोर्ट ने यह माना है कि विधवा उस जायदाद के सम्बन्ध में जिसका मुक़द्दमा चल रहा है समझौता कर सकती है और उसको फैसले के खिलाफ़ अपील करनेका अधिकार है, देखो--तारणीचरण गङ्गोली बनाम वाटसन 3 B. L. RA. C. 437; 12 W. R. C. R. 413-417. लेकिन अगर बिना ज़रूरत के समझौता किया हो जिससे जायदादका इन्तकाल हो जाय, या वह समझोता रिवर्जनरोंके लिये मुफ़ीद न हो तो रिवर्जनर उसके पाचन्द नहीं होंगे 14 W. R. C. R. 146; 33 Mad. 473. अगर स्त्रीने सिर्फ अपने आरामके लिये किया हो तो भी वही सूरत होगी (6CL. R. 76. ) यह माना गया है कि स्त्रीने अगर अपने जाती हक़के बारेमें कोई समझौता किया हो तो उसपर कोई रिवर्जनर उज्र नहीं कर सकता है।
दफा ७१९ रिवर्ज़नरको फरीन बनाया जाना
मिस्टर मेन अपने हिन्दूलों के पेज ८६३ दफा ६४१ के नोट Y में कहते हैं कि मुक़द्दमे में स्त्रीके साथ उसके रिवर्जनरोंको भी फ़ीक़ मुक़द्दमा बनालेना अच्छा होगा, ताकि पीछे वह कोई उम्र न कर सकें और उस फैसले के पाबन्द हो जायँ, इस बातपर ट्रिवेलियन हिन्दूलॉ पेज ४७६ में विरोध किया गया है उसमें कहा गया है कि रिवर्जनरों को फ़रीक़ बनाने की कोई वजह नहीं है क्योंकि रिवर्जनरों के हक़पर कोई असर उस फैसलेका नहीं पड़ता ।
दफा ७२० मुक़द्दमेका खर्च
जो मुक़द्दमा किसी सीमाबद्ध स्त्री-मालिकने चलाया हो या उस पर किसी दूसरेने चलायाहो दोनों मुक़द्दमोंके खर्च की जिम्मेदार उसकी जायदाद होगी, देखो - चन्द्रकुमार राय गनेशचन्द्र 13 Cal. 2833 6 Cal. 479; 8 C. L. R. 1.
दफा ७२१ डिकरीमें नीलाम
विधवा, या दूसरी सीमाबद्ध स्त्री मालिकपर डिकरी होने से जो जायदाद नीलाम हो तो उस नीलामसे उस स्त्रीके जिन्दगीभरका हक़ ही नीलाम हो सकता है ज्यादा नहीं यानी खरीदार नीलामको उस स्त्री के मरने पर जायदाद छोड़ देना पड़ेगी, उस वक्त उस जायदादके मालिक रिवर्ज - नर हो जायँगे, देखो -- 11 M. I. A. 241; 8 W. R. ( P. C. ) 17; 26 Cal. 285; 17 Mad. 208, 15 B. L. R. 142; 16 Cal. 511.