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दफा ७]
हिन्दूलॉ की उत्पत्ति
प्राचीन हिन्दू धर्मशास्त्रोंमें मुआहिदा, शहादत, वरासतका सार्टीफिकट और ताजीरात हिन्दके उद्देश्यों तथा नियमोंका वर्णन है किन्तु अंग्रेजी कानूनों की श्रेष्ठताके कारण वे ज्योंके त्यों अब नहीं मानेजाते । जहांपर अंग्रेजी कानून, प्राचीन हिन्दू धर्मशास्त्रके विरुद्ध कोई बात मानते हैं वहांपर प्राचीन हिन्दू धर्मशास्त्रके नहीं मानेजाते । जैसे इन्डियन कंन्ट्राक्ट ऐक्ट नं०६ सन् १८७२ ई० के नियम हिन्दूलॉ ( हिन्दू धर्मशास्त्र) के 'मुआहिदेसे श्रेष्ठ माने जाते हैं मगर दामदुपटके नियमोंमें उसका प्रभाव नहीं पड़ता। इन्डियन एवीडेन्स ऐक्ट नं०१ सन् १८७२ ई० के नियम हिन्दूलॉके साक्षि प्रकरणसे प्रधान माने जाते हैं। सक्सेशन सार्टीफिकट ऐक्ट नं० ३६ सन् १९२५ ई० किसी हिन्दूके कर्जेकी डिकरी हेोनेसे पहले लागू होता है और ताजीरातहिन्द नं०४५ सन् १८६० ई० के अपराधोंके दण्ड सम्बन्धी नियम हिन्दूलॉ के समग्र दण्ड विधान से प्रधान माने जाते हैं इस तरहपर अंग्रेज़ी कानूनोंकी प्रधानता हिन्दूला (हिन्दू-धर्मशास्त्र) के कुछ सिद्धान्तों पर हो गयी है। दफा ७ हिन्दूलॉ का अदालतोंसे सम्बन्ध
ब्रिटिश भारतकी अदालतोंका अधिकार, हिन्दुओंके मामलोंके साथ हिन्दूलॉके लागू करनेका,इम्पीरियल पार्लिमेन्ट और प्रान्तीय सरकारोंके बनाये हुए कानूनोंसे पैदा होता है । यही कारण है कि ज्योंका त्यों हिन्दूधर्मशास्त्र आजकल अदालतोंमें नहीं माना जाता । कानूनोंसे उसका रूपान्तर होगया है। किस प्रांतकी अदालतमें कौनसा कनून किस विषयमें इस समय माना जाता है इसका उल्लेख हम नीचे करते हैं:--देखो पेज १२ का नक्शा ।