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दफा ६६९]
रिवर्जन के अधिकार
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भावी वारिस बिना विधवाके इन्तकालको मसूख कराये हुयेही, अपने अधिकारको जारी करा सकता है। लिमिटेशन एक्ट आर्टिकिल ६१ हनमगोवदा सिदगोवदा बनाम हरगोवदा शिवगोवदा 84 I. C 374; A. I. R. 1925 Bom. 9. नज़दीकी भावी वारिस उसी सूरतमें नालिश इस्तकरार हक्र कर सकता है, जब कि वह अपनी कार्यवाही के कारण उससे महरूम न कर दिया गया हो-बच्चू पांडे बनाम मुल्दुलम A. I. R. 1925 All 8.
नालिश इस्तकरार हक़की समझौते द्वारा निश्चय होना-माया इस मामले से परासत पानेका आशापूर्ण अधिकार समाप्त हो जाताहै या यह विवादग्रस्त अधिकारोंका हकीकी समझौता होता है--वहादी कामराजू बनाम वंकट लक्ष्मीपति 21 L. W.711; 88 I. C. 9823 A. I. R. 1925 Mad, 1043; 49 M. L. J. 296.
विधवाके जीवनकालमें विधवा द्वारा वसीयतका विरोध करते हुये, नालिश इस्तकरार हक़ नहीं हो सकती, किन्तु यदि नीचेकी अदालत किसी खास परिस्थितिके कारण, ऐसी नालिशकी इजाजत दे दे, तो हाईकोर्ट उसमें हस्तक्षेप नहीं करती।
कब्ज़ा मुखालिफाना-किसी विधवा द्वाराजोजायदादकी प्रतिनिधिहो या उसके खिलाफ कानूनी नालिशकी पाबन्दी भाषी वारिसोंपर है-विधवाके खिलाफ क़ब्ज़ा मुखालि काना, भावी वारिसोंके खिलाफमी कब्ज़ा मुखालिफानाहै-कैथोलिंग मुद्दालियर बनाम श्री रंगाथ अनी (1926) M. W. N. 11; 30 C. W. N. 313; 99 I. C. 85 (2); 28 Bom. L. R. 1735 A. I. R. 1925 P. C. 249 ( P. C.). दफा ६६९ जायदादके सम्बन्धमें सफलत
जब कोई सीमावद्ध मालिक जायदादके सम्बन्धमें गफलत करे या उस जायदादपर किसीका नाजायज़ करज़ा हो जानेदे तो रिवर्ज़नर दावा कर सकताहै, देखो-राधामोहन बनाम रामदास 3 B. L. R. A. C. 362, 84 W. R. C. R. 863 21 W. R.C. R. 444, चन्द्रकुमार गंगोली बनाम राजकिशन बनरजी 14 W. R.C. R. 3227 श्रादिदेव नारायणसिंह बनाम दुखहरणसिंह 5 All. 5327
__ जायदादके हलके सम्बन्ध में अगर कोई सन्देह हो और सीमावद्ध मालिक उस सन्देहको दावा करके निवृत्त करानेसे इनकार करे या प्रफलत करे, तो रिवर्ज़नर कुछ सूरतोंमें खुद वैसा दावा करके हक़साफ करा सकता है, और सन्देह अगर कोई हो तो उसे मिटवा सकता है, देखो-सूर्यवंशी कुंवर बनाम महीपतसिंह 7 B. L. R. 669516 W. R. C. R. 18.